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________________ ( २१ ) ___ इस खुर्शी नामा से पाठक समझ सकते हैं कि अभयदेवसूरि के साथ वल्लभ का क्या सम्बन्ध है ? कुछ नहीं। खरतर मत की मर्यादा का संयोजक जैसे जिनपति एवं जिनेश्वरसूरि (द्वितीय) था वैसे ही रुद्रपाली मर्यादा बाँधने वाला अभयदेवसूरि था। ___यह तो हुई जिनवल्लभ सूरि के उत्सूत्र से 'विधिमार्ग' मतोत्पत्ति की बात । आगे चल कर इस विधिमार्ग का नाम खर. तर किस प्रकार हुआ वह बतलाया जायगा जिसको पाठक खूब ध्यान लगा कर पढ़ें। देवभद्राचार्य ने संघ से खिलाफ हो श्री संघ से बहिष्कृत हुए वल्लभ को आचार्य बना कर श्री संघ में एक फूट के वृक्ष का बीज बो दिया था और उसको फला फूला देखने की बड़ी २ आशाओं के पुल बांध रहा था पर भाग्यवशात छः मास में ही वल्लभसूरी का देहान्त हो जाने से देवभद्र की सबकी सब आशायें मिट्टी में मिल गई । यदि देवभद्र इतने से ही संतोष कर लेता तो वह फूट रूपी वृक्ष वहीं नष्ट हो जाता, पर देवभद्र भी एक हठीला पुरुष था कि अपने हाथों से लगाया हुआ वृक्ष अपनी मौजूदगी में ही नष्ट कैसे हो जाय । देवभद्र ने वल्लभ के पट्टधर बनाने के लिये बहुत कोशिश की परन्तु ऐसे काले कर्म किस के थे कि उन उत्सूत्र प्ररूपक एवं श्रीसंघ से बहिष्कृत जिनवल्लभ का पट्टधर बने ? दूसरे जिनवल्लभ के न था साधु, न थी साध्वी फिर किस जायदाद पर उसका पट्टधर बने। कुदरत का यह एक नियम है कि जैसे को तैसा मिल ही जाता है । इस नियमानुसार देवभद्राचार्य को एक सोमचन्द्र नामक मुनि मिल गया। सोमचन्द्र ने वि० सं० ११४१ में धर्मदेवो
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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