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________________ ( २० ) जैन समाज की तकदीर हो अच्छा थी कि जिनवल्लभ श्राचार्य बनने के बाद केवल छः मास ही जीवित रहा। यदि वह अधिक जीवित रहता तो न जाने जैनसमाज के लिये क्या २ उजाला कर जाता । किसी राजाने अपनी मौजूदगी एवं अपने हाथों से अपने योग्य पुत्र को राजतिलक कर सब अधिकार सुप्रत कर दिया, पर कोई रिश्वतखोरा एक चलते फिरते इज्जतहीन को लाकर राजा बना दे तो क्या जनता उसको राजा मान लेगी ? हगिंज नही । यही हाल जिनवल्लभ का हुआ, अतः वल्लभ को अभ यदेवसूरि के पट्टधर बना देने से श्रभयदेवसूरि का पट्टधर नहीं कहा जा सकता है । कारण, अभयदेवसूरि तो शुद्ध चन्द्रकुल की परम्परा में हैं और अभयदेवसूरि की सन्तान परम्परा भी अभयदेवसूरि के नाम से चलती आई है। देखिये कुपुरा गच्छीय चैत्यवासी जिनेश्वरसूरि विधिमार्ग स्थापक जिनचन्द्रसूरि 1 श्रभयदेवसूरि वर्द्धमानसूर | पद्मप्रभसूरि + + + धर्मघोषसूरि जिनवल्लभसूरि 1 जिनदत्तसूरि ( खरतर शाखा) | जिनचन्द्र 1 जिनपति जिनेश्वर + जिनशेखर सूरी (रुद्रपाली शाखा / पद्मचन्द्र 1 विमलचन्द्र अभयदेव t
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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