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________________ ( ८ ) यही बात जिनपतिसूरि का शिष्य सुमतिगणि ने गणधर सार्धशतक की वृहद् वृति में लिखी है : इसका भावार्थ यह है कि जिनवल्लभ को श्रश्विनकृष्ण त्रयोदशी के दिन श्री महावीर के गर्भापहारकल्याणक का लेख प्राप्त हुआ । तब श्रावकों के सामने जिनवल्लभ कहने लगा भो ! श्रावको ! आज श्रीमहावीर देव का गर्भापहार नामक छट्टाकल्या क जैसे 'पंचहत्त्तरे होत्था साइणापरिनिव्वुडे' ऐसा प्रकट अक्षर सिद्धान्त में प्रतिपादित है इसकी आराधन विधि के लिये यहांविधि चैत्य तो है नहीं इसलिये चैत्यवासियों के चैत्य (मंदिर) में चल कर यदि देववंदन करें तो अच्छा होगा । गुरुमुख के वचन सुन कर श्रावकों ने कहा कि आप करें उसमें हमारी सम्मति है । बाद गुरु आदेश से वे सब श्रावक निर्मलशरीर, निर्मत्ववस्त्र और निर्मल पूजोपकरण लेकर गुरु के साथ मन्दिर जाने को प्रवृतमान हुये, पर उस मन्दिर में एक आर्यका थी उसने श्रावकों के साथ गुरु को आते हुए देख कर पूछा कि आज क्या विशेषता है ? इस पर किसी ने कहा कि वीर के गर्भापहार नामक छटे कल्याणक की आराधना के लिये हम सब श्रा रहे हैं । इस पर उस श्रार्यका ने सोचा कि पूर्व किसी ने भी छट्टाकल्याणक न तो कहा और न देववन्दनादि किया है अतः यह प्रयुक्त है । जब यह बात अन्य संयतियों को खबर हुई तो वे लोग देवगृहद्वार पर आकर खड़े * जिस चैत्य को जिनवल्लभ ने अवन्दुनीक ठहराया था आज उस चैत्य को वन्दन करने का उपदेश दे रहा है ।
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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