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________________ १८] [श्रेष्ठि संघवी धरणा पूजा भी बनाई जाती है । इस प्रतिष्ठोत्सव में दूर २ के अनेक नगर, प्रामों से ५२ बावन बड़े संघ आये थे तथा अनेक बड़े २ प्राचार्य अपने शिष्यगणों के सहित उपस्थित हुये थे। इस प्रकार ५०० साधु-मुनिराज एकत्रित हुये थे । उक्त शुभ दिवस में मूलनायक-युगादिदेव-देवकुलिका में सं० धरणाशाह ने एक सुन्दर प्रस्तर पीटिका के ऊपर चारों दिशाओं में अभिमुख युगादिदेव भगवान् आदिनाथ की भव्य एवं श्वेत प्रस्तर विनिर्मित चार सपरिकर विशाल प्रतिमाएं स्थापित की। प्रतिष्टोत्सव दिन से ही पश्चिम सिंहद्वार के बाहर अभिनय होने लगे । दक्षिण सिंहद्वार के बाहर श्री सोमसुन्दरसूरि तथा अन्य प्राचार्यों, मुनिमहाराजों के दर्शनार्थ श्रावकों का समारोह धर्मशाला के द्वार पर लगा रहता था, पूर्वसिंह-द्वार के बाहर वैतादयगिरि का मनोहारी दृश्य था, जिसको देखने के लिये भीड़ लगी रहती और उत्तर सिंह-द्वार के बाहर श्रावक-संघ दर्शनार्थ एकत्रित रहते। प्रतिष्ठावसर पर सं० धरणाशाह ने अनेक आश्चर्यकारक कार्य किये तथा दीनों को बहुत दान दिया और उनका दारिद्रय दूर किया। प्रतिष्ठोत्सव के समाप्त हो जाने पर श्री सोमदेव वाचक को आचार्यपद प्रदान किया गया। सं० धरणाशाह ने आचार्यपदोत्सव को बहुत द्रव्य व्यय करके मनाया। १-वि० सं० १४६६ में मेहकविकृत राणकपुरतीर्थस्तवन ।। २-उत्तराभिमुख मूलनायक प्रतिमा वि० सं०१६७६ की प्रतिष्ठित है। इससे यह सिद्ध होता है कि सं० धरणाशाह की स्थापित प्रतिमा खण्डित हो गई है । अतः प्राग्वाट ज्ञातीय विरधा और उसके पुत्र हेमराज नवजी ने उक्त प्रतिमा स्थापित की।
SR No.032636
Book TitleSanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Sangh Sabha
Publication Year1953
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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