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________________ श्री राणकपुरतीर्थ] [१५ तैयार हो गई थी और वि० सं० १४६८ तक चारों सिंहद्वारों की भी रचना हो चुकी थी और जिनालय प्रतिष्ठित किये जाने के योग्य बन चुका था। सं० धरणाशाह के अन्य राणकपुर नगर में सं० धरणा ने चार तीन कार्य और त्रैलोक्य- कार्य एक ही मुहूर्त में प्रारम्भ किये। दीपक धरणविहारनामक सं० धरणाशाह का प्रथम महान सत्कार्य जिनालय का प्रतिष्ठोत्सव तो उपरोक्त जिनालय का बनवाना है . ही। अतिरिक्त उसने राणकपुर नगर में निम्न तीन कार्य और किये। एक विशाल धर्मशाला बनवाई। जिसमें अनेक चौक, कक्ष (औरड़ियाँ) थे तथा जिसमें काष्ट चतुरधिकाशीतिमितैः स्तंभैरमितेः प्रकृष्टतरकाष्टैः। निचिता च पट्टशालाचतुष्किकापवरकप्रवरा ॥ श्री धरणनिर्मिता या पौषधशाला समस्त्यतिविशाला। तस्या समवासार्षः प्रहर्षतो गच्छनेतारः॥ -सोमसौभाग्यकाव्य सं० धरणा का एक विशाल धर्मशाला के बनाने का निश्चय करना स्वाभाविक ही था। क्योंकि ऐसे महान् तीर्थ स्वरूप जिनालय की प्रतिष्ठा के समय अनेक प्रसिद्ध आचार्यों की अपने अनेक शिष्यगणों के सहित आने की सम्भावना भी थी और ऐसे तीर्थों में अनेक साधु, मुनिराज सदा ठहरते हैं। अतः ठहरने की समुचित व्यवस्था तो होनी ही चाहिए। यह धर्मशाला जीर्ण-शीर्ण अवस्था में अभी तक विद्यमान थी। वि० सं० २००४-५ में समूलतः नष्ट हो गई और फलतः उठवा दी गई।
SR No.032636
Book TitleSanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Sangh Sabha
Publication Year1953
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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