SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ ] [श्रेष्ठि संघवी धरणा नलिनीगुल्मविमान का रेखाचित्र बनाकर प्रस्तुत किया। सं० धरणा ने देपाक को अपना प्रमुख कार्यकर नियुक्त किया। मादड़ी ग्राम और अली अथवा आडावला पर्वत की उसका नाम राणकपुर विशाल, उन्नत एवं रम्य श्रेणियाँ मरुधररखना प्रान्त तथा मेदपाट-प्रदेश की सीमा निर्धारित करती हैं और वे मरुधर से आग्नेय और मेदपाट के पश्चिम में आई हुई हैं। इन पर्वतश्रे-णियों में होकर अनेक पथ दोनों प्रदेशों में जाते हैं। जिनमें देसूरी की नाल अधिक प्रसिद्ध है। कुम्भलगढ़ का प्रसिद्ध ऐतिहासिक दुर्ग, जिसको प्रतापी महाराणा कुम्भकर्ण ने बनवाया था, इसी बाड़ावाला पर्वत की महानतम शिखा पर श्राज भी सुदृढ़ता के साथ अनेक विपद-बाधा झेलकर खड़ा है। महाराणा कुम्भकर्ण इसी दुर्ग में रहकर अधिकतर प्रबल शत्रुओं को छकाया करते पेढी ने पर्वतों के ढाल से जिनालय की ओर आने वाले पानी को रोकने के लिये जिनालय से दक्षिण तथा पूर्व में लगभग एक या डेढ फाग के अन्तर पर बनाया है पर्याप्त लम्बा और ऊँचा है। और समस्त उपत्यका-स्थल में समतल भाग ही यही है जहाँ नगर का मध्य या प्रमुख भाग बसा होना चाहिए था। मेरी दृष्टि में तो यही उचित मालूम पड़ता है कि यहाँ साधारण ज्ञाति के लोगों का निवास था, जिनसे धरणाशाह ने भूमि खरीद कर ली। वे राजाज्ञा से यह भाग छोड़ कर कुछ दूरी पर जा बसे । यह अवश्य सम्भव है कि त्रैलोक्यदीपक जिनालय बनने के समय जैन आबादी अवश्य बढ़ गई हो । महाराणा और श्रीमन्तों की अट्टारियों बन गई हों, नगर की रमणिकता बढ़ गई हो, परन्तु मादड़ी एक अति विशाल नगर था, सत्य प्रतीत नहीं होता है।
SR No.032636
Book TitleSanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Sangh Sabha
Publication Year1953
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy