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[श्रेष्ठि संघवी धरणा
हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। महाराणा कुम्भकर्ण का राज्य अजमेर, मंडोर, नागपुर, गागरण, बूंदी तथा खाटू, चाटू तक विस्तृत था। फलतः उनके दरबार में अनेक वीर, यौद्धा, श्रीमन्त, सज्जन व्यक्ति रहते थे। सं० धरणा महाराणा कुम्भकर्ण के प्रति विश्वास-पात्र एवं राज्य के प्रति प्रतिष्ठित श्रीमन्त व्यक्तियों में से थे।
परमाईत सं० धरणाशाह का राणकपुर में नलिनीगुल्मविमान त्रैलोक्यदीपक-धरणविहार नामक चतुर्मुख
आदिनाथ जिनप्रासाद का बनवाना ।
सोना
सं० धरणा को स्वप्न जैसा लिखा जा चुका है सं० धरणा का होना बुद्धिमान, चतुर और जैसा नीतिज्ञ था,
वैसा ही दृढ़ जैनधर्मी, गुरुभक्त और जिनेश्वरदेव का उपासक भी था । वह बड़ा तपस्वी भी था। (४१) ... " राणपुरनगरे राणाश्रीकुम्भकरण(४२) नरेन्द्रेण स्वनाम्ना निवेशिते तदीयसुप्रसादादेशतस्त्रैलोक्यदीपका
राणकपुर प्रशस्ति अनेक पुस्तकों में मादड़ी ग्राम के विषय में बहुत बढ़ा-चढा कर लिखा है कि यहाँ २७०० सत्ताईसो घर तो केवल जैनियों के ही थे। और अन्य ज्ञातियों के फिर कितने ही सहस्रों होंगे। ये सब बातें अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, जो मंदिर के आकार की विशालता को देखकर अनुमानित की गई हैं । लेखक श्री त्रैलोक्यदीपक धरण विहार