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________________ परिवर्तन प्रकरण ( १८९०-१९२५) बत्तीसवाँ अध्याय परिवर्तन-कालिक हिंदी बों तो प्रौढ़ माध्यमिक काल ही में हिंदी भाषा परिपक्क हो चुकी थी, पर अलंकृत काल में उसे हमारे कविजनों ने प्राभूषणों से सुसजित कर ऐसी मनमोहिनी बना दी कि उसमें किसी प्रकार की कमी न रह गई, बरन् यों कहना चाहिए कि उत्तरालंकृत काज में भूषणों की ऐसी भरमार मच गई कि उसके कोमल कलेवर पर उनका बोझ प्रायः असा प्रतीत होने लगा। हम स्वीकार करते हैं कि कोई शशिबदनी चाहे जितनी स्वरूपवती हो, पर कुछ आभूषण पिन्हा देने से उसकी शोभा बढ़ जाती है । फिर भी कहना ही पड़ता है कि जैसे अंग-प्रत्यंगों को प्राभरणों से आच्छादित कर देने से कुछ ग्रामीणता एवं भद्दापन बोध होने लगता है, उसी प्रकार कविता को भी विशेष रूप से अलंकृत करने पर उसकी नैसर्गिक सुघराई में बट्टा लग जाना स्वाभाविक ही है । अन्य भाषाओं में प्रायः माध्यमिक कान के पीछे ही परिवर्तन समय आ जाता, और कुछ ही दिनों के बाद उनकी वर्तमान दशा का वर्णन होने लगता है, पर हिंदी में यह विलक्षण विशेषता है कि माध्यमिक और परिवर्तन काज के बीच में दो शताब्दियों से भी कुछ अधिक समय तक हमारे कविजन भाषा को अलंकृत करने ही में लगे रहे। इसका परिणाम यह अवश्य हुआ कि हिंदी-जैसी मधुर एवं अलंकारयुक्त
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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