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मिश्रबंधु-विनोद
जलदान की दृष्टि भई चहुँघा महिमंडल को दुख दूरि गयो ; खल पास जवास नसी छिन मैं बक ध्यानिन बास प्रकास नयो । दुज दादुर बेद मैं सुख सों मन साल बिहाय बिसाल भयो । पिक मागध गान करें जस को ऋतु पावस कै नृप नीति मयो ॥६॥
(२३९० ) रामराव चिंचोलकर । इनका संवत् १९६० के लगभग प्रायः ४० वर्ष की अवस्था में देहांत हो गया। अापकी प्रकृति बड़ी ही सौजन्यपूर्ण और सरल थी। श्राप पंडित माधवराव सप्रे के साथ छत्तीसगढ़-मित्र का संपादन करते थे। एक बार हमने मज़ाक में कहा कि इस पत्र को 'नाऊगढ़मित्र' भी कह सकते हैं, क्योंकि 'नाऊ' को छत्तीसा कहते हैं । इस पर अापने केवल इतना ही कहा कि "ऐसा !" और ज़रा भी बुरा न माना । आप छत्तीसगढ़-निवासी महाराष्ट्र ब्राह्मण थे। नाम-(२३९१) शिवसंपति सुजान भूमिहार, उदिया,
जिला आजमगढ़। ग्रंथ-(१) शतक, (२) शिक्षावली, (३) शिवसंपति
सर्वस्व, (४) नीतिशतक, (५) शिवसंपतिसंवाद, (६) नीतिचंद्रिका, (७) आर्यधर्मचंद्रिका, (८) वसंतचंद्रिका, () चौतालचंद्रिका, (१०) सभामोहिनी, (११) यौवनचंद्रिका, (१२ ) जौनपुर-जलप्रवाहविलाप, (१३) मनमोहिनी, (१४) पचरा-प्रकाश, (११) भारतविलाप, (१६) प्रेमप्रकाश, (१७) ब्रजचंदबिलास, (८) प्रयागप्रपंच, (१६) सावनबिरहबिलाप, (२०) राधिका-उराहनो, (२१) ऋतुविनोद, (२२) कजलीचंद्रिका, (२३) स्वर्ण कुँवरिविनय, (२४) शिवसंपतिविजय, ( २५) शत्रुसंहार, (२६) शिवसंपति साठा, (२७) प्राणपियारी, (२८)