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मिश्रबंधु-विनोद
दुर्भाग्य वश वह भी अपूर्ण ही रही। आपकी कविता बढ़ी ही सरस होती थी और उसमें ऊँचे-ऊँचे भाव बहुत रहते थे। हम इनकी गणना तोष की श्रेणी में करते हैं । सन् १९१७ में इनका भी शरीरपात हो गया।
उदाहरणसमुहातहि मैली प्रभा को धरै नित नूतन प्रानि कै फोस्यो करें ; सरसी ढिग जात में देई लखात न या डर सोंग जोरयों करें । ब्रजराज हितै नभ ओर चितै नहिं तू भरमै यों निहोरयो करें ; तऊ पारसी कंज ससी सकुचें इनसों कबलौं मुख मोरयो करें ॥१॥ सारी सिर बैंजनी मैं कंचन बुटी की श्रोप,
मुकुत किनारी चहुँ पोरन गसत हैं ; जरबीली जरित जरी की जाफरानी पाग,
कोर मैं जमुरंदी जवाहिर लसत हैं। रतन-सिंहासन पै दीन्हे गल बाही,
मुख-चंद मुसुकाय भवताप को नसत हैं ; या बिधि अनंद-भरे राधा ब्रजचंद सदा,
दंपति चरण मेरे हिय मैं बसत हैं ॥ २ ॥ (२३८३ ) गोपालरामजी गहमर, जिला गाजीपूर-निवासी
आपका जन्म १६१३ में हुआ था । आप हिंदी गद्य के प्रसिद्ध लेखक हैं। कई वर्षों से आप जासूस-पत्र के संपादक हैं । अच्छे उपन्यास भी आपने कई लिखे हैं। चतुरचंचला, माधवीकंकण, भानमती, सौभद्रा, नए बाबू, मैं और मेरा दाता तथा अनेक जासूसी उपन्यास आपके बनाए हुए भाषा-संसार को चमस्कृत कर रहे हैं । श्रापका कविताकाल संवत् १६४५ से समझना चाहिए। आपकी बनाई हुई प्रायः १०० पुस्तकें हैं । चित्रांगदा, सोना शतक तथा वसंतविकास. नामक तीन पद्य ग्रंथ भी आपने रचे हैं।