SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२७६ मिश्रबंधु-विनोद दुर्भाग्य वश वह भी अपूर्ण ही रही। आपकी कविता बढ़ी ही सरस होती थी और उसमें ऊँचे-ऊँचे भाव बहुत रहते थे। हम इनकी गणना तोष की श्रेणी में करते हैं । सन् १९१७ में इनका भी शरीरपात हो गया। उदाहरणसमुहातहि मैली प्रभा को धरै नित नूतन प्रानि कै फोस्यो करें ; सरसी ढिग जात में देई लखात न या डर सोंग जोरयों करें । ब्रजराज हितै नभ ओर चितै नहिं तू भरमै यों निहोरयो करें ; तऊ पारसी कंज ससी सकुचें इनसों कबलौं मुख मोरयो करें ॥१॥ सारी सिर बैंजनी मैं कंचन बुटी की श्रोप, मुकुत किनारी चहुँ पोरन गसत हैं ; जरबीली जरित जरी की जाफरानी पाग, कोर मैं जमुरंदी जवाहिर लसत हैं। रतन-सिंहासन पै दीन्हे गल बाही, मुख-चंद मुसुकाय भवताप को नसत हैं ; या बिधि अनंद-भरे राधा ब्रजचंद सदा, दंपति चरण मेरे हिय मैं बसत हैं ॥ २ ॥ (२३८३ ) गोपालरामजी गहमर, जिला गाजीपूर-निवासी आपका जन्म १६१३ में हुआ था । आप हिंदी गद्य के प्रसिद्ध लेखक हैं। कई वर्षों से आप जासूस-पत्र के संपादक हैं । अच्छे उपन्यास भी आपने कई लिखे हैं। चतुरचंचला, माधवीकंकण, भानमती, सौभद्रा, नए बाबू, मैं और मेरा दाता तथा अनेक जासूसी उपन्यास आपके बनाए हुए भाषा-संसार को चमस्कृत कर रहे हैं । श्रापका कविताकाल संवत् १६४५ से समझना चाहिए। आपकी बनाई हुई प्रायः १०० पुस्तकें हैं । चित्रांगदा, सोना शतक तथा वसंतविकास. नामक तीन पद्य ग्रंथ भी आपने रचे हैं।
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy