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________________ वर्तमान प्रकरण . १२५७ द्विजराजजी बाल्यावस्था से ही कविता के प्रेमी थे और उन्होंने सदैव उत्तम छंद बनाने को ओर ध्यान रक्खा । इनकी कविता परम सरस और गंभीर भावों से भरी होती थी। और इनकी भाषा सानुप्रास, मनोहर, एवं टकसाली होती थी। इनके ग्रंथ अभी मुद्रित नहीं हुए हैं, पर वे इनके पुत्रों के पास सुरक्षित हैं। वे सब ग्रंथ इस समय हमारे पास मौजूद हैं। उनके नाम ये हैं-श्रीरामचंद्रनखशिख, दुर्गास्तुति, भव्यावलहरी, वासुदेवपंचक, नामनिधि, प्यारीजू को शिखनख, वर्णमाला, विजयमंजरीलतिका, विजयानंदचंद्रिका और स्फुट काव्य । दुर्गास्तुति, भव्याणवलहरी। विजयमंजरीलतिका और विजयानंदचंद्रिका में दुर्गादेवी की स्तुति की गई है और शत्रु-विनाश की प्रार्थना भी है। नामनिधि और वर्णमाला में इन्होंने प्रत्येक अक्षर लेकर अखरावट की भाँति उस पर रचना की है। ये ग्रंथ अपूर्ण हैं। इनके ग्रंथ प्राकार में सब छोटे-छोटे हैं, और कल मिलाकर इनकी रचना प्रायः २०० पृष्ठों की होगी। पर इन्होंने थोड़ा बनाकर आदरणीय तथा सारगर्भित कविता करने का प्रयत्न किया, और उसमें ये सफल-मनोरथ भी हुए । हम इन्हें तोष की श्रेणी में रखेंगे। फरकै लगी खंजन-सी अँखियाँ भरि भावन भौं हैं मरोरै लगी; अंगिराय कळू अँगिया की तनी छवि छाकि छिनौ छिन छोरै लगी। बलि जैबे परै द्विजराज कहै मन मौज मनोज हलोरै लगी ; बतियान में आनँद घोरै लगी दिन द्वैते पियूष निचोरै लगी। मनि मंगल देवन देस दुरे लखि बारिज साँझ बजाने रहैं ; किसलै न प्रबाल कै बिंब जपा जड़ताई के जोगन प्राने हैं। अरुनाई सियावर पाँयन ते उपमान सबै अपमाने रहैं ; द्विजराज जू देखौ दिनेस अजौं अरुनोपल आड़ लुकाने हैं। (२३६० ) सुधाकर द्विवेदी महामहोपाध्याय । इनका जन्म संवत् १९१७ में, काशीपुरी में, हुआ और उसी पुरी
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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