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________________ वर्तमान प्रकरण १२११ सर्विस पास करके भारत में १९१५ पर्यंत रहे । इनको हिंदी से बड़ा प्रगाढ़ प्रेम था, और सदैव इनके द्वारा हिंदी का उपकार होता रहा है। इन्होंने मैथिली भाषा का व्याकरण, विहारी-कृषक-जीवन, और विहारी बोलियों का व्याकरण-नामक ग्रंथ बनाए, तथा विहारी-सतसई, पद्मावती, भाषाभूषण, तुलसी-कृत रामायण आदि ग्रंथों को संपादित किया। इन ग्रंथों के अतिरिक्त आपने माडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान-नामक इतिहास-ग्रंथ शिवसिंहसरोज एवं अन्य ग्रंथों के आधार पर भाषा-साहित्य के विषय बनाया। इसमें प्रायः सब बड़े कवियों के नाम आ गए हैं । आजकल भी ये महाशय भाषाओं की खोज का ग्रंथ लिंग्वस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया, कई भागों में लिखी है, जो पूरी प्रकाशित हो चुकी है। इसमें इन्होंने हिंदी की बड़ी प्रशंसा की है। अब ये महाशय विलायत में रहकर पेंशन पाते हैं। आपका हिंदी-प्रेम एवं श्रम सर्वथा सराहनीय है। नाम-(२३४८) गदाधरजी ब्राह्मण, बाँसी। ग्रंथ-(१) घृतसुभातरंगिणी (पद्य, १६ पृ० १६१६), (२) देवदर्शनस्तोत्र (पद्य, १० पृ० १९१८), (३) काव्यकल्पद्रम (गद्य, १२ पृ. १६५६), (४)कामांकुशमदतरंगिणी (गद्य, ४२ पृ० १६५६), (५) बदरीनाथमाहात्म्य (पद्य, २२ पृ० १९५६), (६) गजशालाचिकित्सा (गद्य, १२ पृ० १९६०), (७) वैद्यनाथमाहात्म्य (पद्य, १४ पृ० १६६०), (८) अश्वचिकित्सा (पद्य, ३३८ पृ० १६६१), (६) हरिहरमहात्म्य (पद्य, १० पृ० १९६२), (१०) साधुपचीसी (पद्य, १० पृ० १६६३), (११) नारीचिकित्सा (गद्य, १२८ पृ० १६६२), (१२) जगन्नाथमाहात्म्य, (१३) नयनगदतिमिरभास्कर, (१४) तैल-सुधातरंगिणी, (१५) तैन
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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