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________________ १२५० मिश्र बंधु - विनोद यह आ गई सब हाय बृथा गर सेली लगी न नबेली लगी ॥१॥ ( २३४६ ) त्रिलोकीनाथजी, ( उपनाम भुवनेश कवि ) ये महाशय शाकद्वीपी ब्राह्मण महाराजा मानसिंह प्रयोध्या- नरेश के भतीजे थे। महाराजा मानसिंह के पुत्र अवस्था में स्वर्गवास होने पर उनके दौहित्र महाराज सर प्रतापनारायण महामहोपाध्याय और इनसे राज्यप्राप्त्यर्थं बहुत बड़ी लड़ाई अदालतों में हुई, जिसमें इनकी पराजय हो गई । ये महाशय भाषा के अच्छे कवि थे और इन्होंने पहले चाणक्यनीति का एकादश अध्याय पर्यंत भाषा छंदों में अनुवाद किया, और फिर संवत् ११३७ में भुवनेशभूषणनामक ५० पृष्ठों का स्फुट शृंगार कविता का एक स्वतंत्र ग्रंथ बनाया । इस ग्रंथ के अंत में कुछ चित्र कविता भी की गई है। भुवनेश• विलास, भुवनेशक प्रकाश, भुवनेशयंत्रप्रकाश नामक इनके और ग्रंथ हैं । इनके भाई नरदेव, लक्ष्मीनाथ और तारानाथ भी कवि थे। इनके कुटुंब में और दो-तीन महाशय भी काव्य-रचना करते थे । इनके पितृभ्य महाराजा मानसिंहजी उपनाम द्विजदेव अच्छे कवि हो गए हैं। भुवनेशजी का स्वर्गवास हुए क़रीब ३७ वर्ष के हुए हैं। इनके ग्रंथों का एवं इनके कुटुंबियों के कवि होने का हाल भुवनेशभूषण ग्रंथ में इन्होंने लिखा है । इन्होंने व्रजभाषा में कविता की है, जो सरस और मनोहर है । हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करते हैं । उदाहरणार्थ इनका केवल एक छंद नीचे लिखा जाता है 1 1 कर कंज केवार पैराजि रहे छहरी छिति लौं छुटिकै अलकें ; अँगिराति जम्हाति भली बिधि सों धनैननि श्रानि परों पलकें भुवनेशजू भाषे बनै न कछू मुख मंजुल अंबुज से झलकै ; मनमोहन नैन मलिंदन सों रस लेत न क्यों कढ़िकै कलकें । ( २३४७ ) डॉक्टर सर जी० ए० प्रियर्सन सी० आई० ई० इनका जन्म विलायत में, संवत् १६१३ में, हुआ था । श्राप सिविल
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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