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मिश्रबंधु विनोद
(७) करुणाष्टक, (८) महावीराष्टक, ( 8 ) नीति अष्टक, (१०) घटउपदेश, (११) ध्यानषटपदी, ( १२ ) कृष्णशत, ( १३ ) विनयशत, ( १४ ) गुरुमहिमा, (१५) अश्वचालीसा, (१६) संप्रदाय सार, (१७) उत्सवप्रकाश, (१८) पदपद्मावली | विवरण - सं० १६७० में वर्तमान थे । आप प्रसिद्ध गोस्वामी गदाधरलालजी के वंश में हैं । उस समय आपकी अवस्था लगभग ६५ साल की होगी। इनकी कविता प्रशंसनीय होती है ।
सरसावैरी ;
सरद सरोज सी सुखात दिन द्वैक हीतैं, हेरिर हिय मैं हिमंत कहै जगदीस बात सिसिर सुहात नाहिं, सुमति बसंत सुखकंत बिसरावैरी । ग्रीम बिखम ताप तन को तपाय तिय,
बोलत न बैन मन मैन मैन मुरझावैरी; पावस पयान पिय सुनिकै सयानि श्रज, अंबुज अनूप द्रग बुंद
बरसावैरी ॥ १ ॥
कमल नैन कर कमल कमल पद कमल कमल कर ; श्रमल चंद मुख चंद विकट सिर चंद चंद धर । मधुर मंद मुसक्यानि कान कुंडल प्रति सोभित ;
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बसन पीत मनि माल माल गुंजन मन लोभित । जगदीस भौंह अलकें श्रधर मंद-मंद मुरली बजत ब्रजचंद मंद अलोकि अलि श्रावत लखि मनमथ लजत ॥२॥ ( २१९३ ) कार्त्तिकप्रसाद खत्री
इनका जन्म संवत् १६०८ में कलकत्ते में हुआ था । इनके माता-पिता का देहांत इनकी बाल्यावस्था में हो गया, सो इनका
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