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१२.३
वर्तमान प्रकरण ( २१७८) नृसिंहदास कायस्थ ये संवत् १६६६ में प्रायः ६५ वर्ष की अवस्था पाकर छतरपूर में मरे । इनकी संतान वर्तमान हैं। ये प्रथम कालिंजर में रहते थे, पर पीछे छतरपूर में रहने लगे। ये वैद्यक करते थे। इनका ग्रंथ 'संतनाममुक्तावली' इन्हीं के हाथ का लिखा हमने देखा है । इसमें ६० छंद हैं, जिनमें दोहे व पद प्रधान हैं। ये साधारण कवि थे। उदाहरण
संत-नाम-मुकतावली, निज हिय धारन हेत; रची दास नरसिंह ने, श्रद्धा भक्ति समेत । हौं नहिं काव्यकलाकुशल, विनय करौं कर जोरि ; छमहु संत अपराध मम, काव्य कलित अति थोरि ।
( २१७९ ) महारानी वृषभानुकुँवरिजी देवी ये उर्जा के वर्तमान महाराजा की पहली महारानी थीं । इनका छोटा पुत्र बिजावर का महाराज है । और इनकी कन्या छतरपूर की महारानी थीं। इनके बड़े पुत्र टीकमगढ़ ( उर्चा का राजस्थान ) में थे। इनका शरीर-पात प्रायः ६० वर्ष की अवस्था में हुआ था । इन्होंने पदों में रामयश का गान किया है। इनकी कविता बढ़िया है। छतरपूर में इनके दंपति-विनोद-लहरी (४६ पृष्ठ), बधाई (९ पृष्ठ), मिथिलाजी की बधाई (१४ पृष्ठ ), बना (२१ पृष्ठ ), होरीरहस ( १६ पृष्ठ ), झूलनरहस ( २१ पृष्ठ ), और पावस (७ पृष्ठ )-नामक ग्रंथ प्रस्तुत हैं । इन सबमें सीताराम का ही वर्णन है। [प्र. त्रै० रि०] में इनके भक्तविरुदावली (१९४२), औरंगचंद्रिका (१९६०) तथा दानलीला (१९६३) नामक तीन और ग्रंथों का पता चलता है। हम इनको तोष कवि की श्रेणी में रखते हैं। उदाहरण
रघुबर दीन बचन सुनि लीजै।