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________________ ११६२ वर्तमान प्रकरण स्वाधीनपनो बल बीरज सबै नरी है मंगलमय भारत भुव मसान है जै है। सुख तजि इत करि है दुःखहि दुःख निवासा, अब तजहु बीरबर भारत की सब आसा ॥॥ यहाँ कवि ने स्वाधीनपनो आदि शब्दों से मानसिक स्वतंत्रता का भाव लिया है न कि राजनीतिक का । यह कवि भारत का अँगरेज़ों से संबंध मंगलकारी समझता था, और राजभक्ति के इसने कई ग्रंथ रचे। इसके विलाप भारतीय मानसिक दुर्बलता-विषयक हैं। (२१७०) तोताराम __ इनका जन्म संवत् १९०४ में, कायस्थ-कुल में, हुआ था। कुछ दिन सरकारी नौकरी करके इन्होंने अलीगढ़ में वकालत जमाई, जहाँ इनकी आय प्रायः अयुत मुद्रा सालाना थी। आप प्रकृति से परम सुशील थे। अलीगढ़ में हम लोगों का इनसे परिचय हुआ था, और इन्हें हमने अपना लवकुश-चरित्र सुनाया था। इन्होंने कुछ दिन भारतबंधु-नामक साप्ताहिक पत्र भी निकाला । केटो-कृतांत-नामक इन्होंने एक नाटक-ग्रंथ बनाया और वाल्मीकीय रामायण का श्राप राम-रामायण-नामक एक उत्था स्वच्छ दोहा-चौपाइयों में बनाते थे, पर वह पूर्ण न हो सका । उसका बालकांड इन्होंने हमें दिया था। हम इनकी गणना मधुसूदनदास की श्रेणी में करेंगे। संवत् १९५६ में इनका शरीर-पात हुश्रा। (२१७१ ) देवीप्रसाद मुंशी ये महाशय गौड़ कायस्थ मुंशी नस्थनलाल के पुत्र थे। इनका जन्म नाना के घर जयपुर में माघ सुदी १४ संवत् १६०४ को हुआ था। संवत् ११२० से १९३४ पर्यंत ये नवाब टोंक के यहाँ नौकर रहे और संवत् ११३६ से महाराज जोधपुर के यहाँ कर्मचारी हो गए। ये महाशय बहुत दिनों तक मुंसिन रहे, और मनुष्य-गणना आदि का
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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