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________________ वर्तमान प्रकरण वर्तमान समय की भाँति टाइप इत्यादि सब सामान था और टाइप जोड़ने का क्रम भी प्रायः श्राजकल के समान ही था । पुरातत्ववेत्ता अँगरेज़ों का यह मत है कि यह प्रेस कम-से-कम एक हज़ार वर्ष का प्राचीन है । इस हिसाब से स्वामी शंकराचार्य के समय तक में प्रेस होने का पता चलता है, फिर भी छापे का प्रचार यहाँ अँगरेज़ी - राज्य के पूर्व बिलकुल न था, और इसी कारण समाचारपत्र भी प्रचलित न थे । "हिंदी भाषा के सामयिक पत्रों का इतिहास"नामक एक ग्रंथ बाबू राधाकृष्णदास ने सन् १८१४ ( संवत् १९५१ में प्रकाशित कराया था, जो नागरीप्रचारिणी सभा, काशी से अब भी मिलता है। इसमें प्राचीन पत्र-पत्रिकाओं के वर्णन पाए जाते हैं । आशा है, सभा इसका एक नया संस्करण निकालकर आगे का हाल भी पूरा कर देगी । ११८२ सबसे पहला हिंदी - पत्र " बनारस अख़बार" था, जो संवत् १९०२ में राजा शिवप्रसाद की सहायता से निकला । इसकी भाषा खिचड़ी थी और सभ्य समाज में इसका आदर नहीं हुआ। इसके संपादक गोविंदरघुनाथ थत्ते थे । साधु हिंदी में एक उत्तम समाचारपत्र निकालने के विचार से कई सज्जनों ने काशी से 'सुधाकर' पत्र निकाला । सबसे पहले परमोत्कृष्ट पत्र जो हिंदी में निकला, वह भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र द्वारा संपादित 'कविवचनसुधा' था, जो संवत् १६२५ से प्रकाशित होने लगा । सुधा पत्र पहले मासिक था, पर थोड़े ही दिनों बाद पाक्षिक होकर साप्ताहिक हो गया। इसकी लेखन शैली बहुत गंभीर तथा उन्नत थी । इसमें गद्य तथा पद्य में लेख निकलते थे, और वह सभी तरह से संतोषदायक थे । संवत् ११३७ के पीछे भारतेंदुजी ने यह पत्र पंडित चिंतामणि को दे दिया, जिनके प्रबंध से यह संवत् १६४२ तक निकलकर बंद हो गया । संवत् १६२६ में बाबू कार्त्तिकप्रसाद ने कलकत्ते से 'हिंदी- दीप्ति प्रकाश' निकाला । यह पत्र
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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