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________________ वर्तमान प्रकरण ११८३ प्रशंसा भी इसी ग्रंथ में पाई जावेगी । इससे कुछ पाठकों को ग्रंथ में परस्पर विरोधी भावों के होने की शंका उठ सकती है। बहुत-से वर्तमान लेखकों का यह भी मत है कि श्रृंगार-काव्य ऐसा निंद्य है कि हिंदी में उसका होना न होने के बराबर है, और यदि ऐसे ग्रंथ फेंक भी दिए जावें, तो कोई विशेष हानि नहीं । इन कारणों से उचित जान पड़ता है कि इस विषय पर हम अपना मत स्पष्टतया प्रकट कर देवें । 1 सबसे पहले पाठकों को कविता के शुद्ध लक्षण पर ध्यान देना चाहिए। पंडितों का मत है कि अलौकिक आनंद देना काव्य का मुख्य गुण है । कुलपति मिश्र ने काव्य का लक्षण यह कहा है"जगते अद्भुत सुखसदन शब्दरु अर्थ कंवित्त ; यह लक्षण मैंने कियो समुझि ग्रंथ बहु चित्त । " इसी आशय का एक लक्षण हमने भी कहा था ; " वाक्य अरथ वा एकहू [ जहँ रमनीय सु होय शिरमौर शशिभाल मत काव्य कहावै सोय ।" इन लक्षणों के अनुसार उपर्युक्त प्रकार के ग्रंथ भी आदरणीय हैं । जो प्रबंध जैसा ही श्रानंद देता है, वह वैसा ही अच्छा काव्य है, चाहे जो विषय उसमें कहा गया हो। फिर वर्णन जैसा ही उत्कृष्ट होगा, कविता भी उसकी वैसी ही प्रशंसनीय होगी । विषय की उपयोगिता भी काव्योत्कर्ष को बढ़ाती है, पर साहित्य- चमत्कार-वर्द्धन की वह एकमात्र जननी नहीं है । इस कारण अनुपयोगी विषयवाले चमत्कृत ग्रंथों को हम तिरस्करणीय नहीं समझते । किसी प्रसिद्ध श्राचार्य ने भी ऐसे ग्रंथों के प्रतिकूल मत प्रकट नहीं किया है । इन ग्रंथों से भी साहित्य-भंडार खूब भरा हुआ देख पड़ता है और वास्तव में है । अभी उपयोगी विषयों के प्रभाव से बहुत लोगों को ये ग्रंथ सौत के से लड़के समझ पड़ते हैं, परंतु जिस समय लाभकारी विषयों के ग्रंथ 1
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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