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________________ ११७२ मिश्रबंधु-विनोद प्रबंधों के कारण हम लोगों को दूर-दूर के मनुष्यों तक से मिलने और भाव-प्रकाशन का पूरा सुभीता हो गया है। अँगरेज़ो राज्य के पूर्ण रीति से स्थापित हो जाने से भी कविता को बड़ा लाभ पहुंचा है। इस राज्य ने अच्छी शांति स्थापित कर दी, जिससे भाषा ने भी उन्नति पाई । इतने पर भी कुछ पूर्व-प्रथानुयायियों ने नई सुभोतावाली बातों से केवल समस्यापूर्ति के पत्र चलाने का काम लिया । समस्यापूर्ति में चमत्कारिक काव्य प्रायः कम मिलता है । पाँच-छ: वर्षों से अब समस्यापूर्ति के पत्रों का बल क्षीण होता देख पड़ता है। और विविध विषयों के पत्रों की उन्नति दिखाई देती है । बहुन दिनों से हिंदी में बारहमासानों के लिखने की चाल चली आती है । इनमें प्रत्येक मास में विरहिणी स्त्रियों की विरह-वेदना का वर्णन होता है। सबसे पहला बारहमासा खुसरो का कहा जाता है और दूपरा, जहाँ तक हमें ज्ञात है, केशवदास ने बनाया। इनके पीछे किसी भारी प्रचीन कवि ने बारहमासा नहीं कहा । इधर श्राकर वजहन, वहाब, गणेशप्रसाद आदि ने मनोहर बारहमासे लिखे हैं। ऐसे ग्रंथों में खड़ी-बोली का विशेष प्रयोग होता है । इनके अतिरिक्त सैकड़ों बारहमासे बने हैं, पर इनकी रचना अधिकतर शिथिल है । बहुतों में रचयिताओं के नामों तक का पता नहीं लगता। अब तक कविता भी विशेषतया व्रजभाषा में ही होती थी, पर अब पंडितों का विचार है कि एक प्रांताय भाषा परम मनोहारिणी होने पर भी समस्त देशीय हिंदी-भाषा का स्थान नहीं ले सकती। उनका मत है कि केवल ऐसो साधु बोली जो एकदेशीय न हो और जो उन सब प्रांतों में व्यवहृत हो, जहाँ हिंदी का प्रचार है, वास्तव में हमारी भाषा कहलाने की योग्यता रख सकती है । उनके मत में खड़ीबोलो ऐसी है और कविता इसी में लिखी जानी चाहिए। १७वीं शताब्दी में गंग एवं जटमल ने खड़ी-बोली में गद्य लिखा । पर गद्य
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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