SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिवर्तन-प्रकरण । में श्रीकरणसिंहजी के नाम से एक ग्रंथ कर्ण-जत्त. मणि-नामक बनाया है । दूसरा ग्रंथ कुकविकुठार नामक है। कविताकाल-१६२५ । स्वयं दूतिका दिन है घरीक एक नेक तो बटोही सुन, मेरी कही मान ना तौ पाछे पछिताइ है। नस्कर चहूँघा फिरे तस्कर तमाम धाम, ___रहत अकेली धाम काहू न सहाइ है। बालम बिदेस छायो जोबन नरेश उधौ, पायो ना सँदेस याते मागत सहाइ है। आखिर करोगे कहूँ रजनि निबेरा डेरा, __याते इत रहो बेरा डेरा चित चाइ है। नाम-( २१६३ ) राजभजनबारी, गजपुर, जिला गोरखपुर। ग्रंथ-स्फुट काव्य । कविताकाल-१९२५ । विवरण-राजा बस्ती के यहाँ थे। नाम-(२०६३) गोपालजो। विवरण-काठियावाड़ देशांतर्गत जेहिसवार प्रांत में स्वस्थान भावनगर राज्य के तावे सिहोर-नामक किस्सा में थे। राव (भाट) मालसिंह के गोपाल नाम का पुत्र हुआ । इन्होंने लोका गच्छ के जैनसाधु पानाचंदजी की संगति से कविता सीखी। इनका जन्मकाल १८८२ का था । और संवत् १६२० में स्वर्गवासी हुए । इनका चंडीविलास-नामक देवी-स्तुति का ग्रंथ है।
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy