SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४६ मिश्रबंधु-विनोद पड़े। इनकी कविता अनुप्रास-पूर्ण परम विशद होती थी । हम इन्हें तोष की श्रेणी में रखते हैं। उदाहरणतम नासि प्रवास प्रकास करै गुन एक गनै नहिं औगुन सारै ; दिन अंत पतंग दई प्रभुता इन संग पतंग अनेक न जारै। अति मित्र के द्रोही बिछोही सनेह के याते सखा सिख मेरी विचारै ; मनि मंजु धरै ब्रज मंदिर मैं रजनी मैं जनी जनि दीपक बारै । नाम- ( २०९७ ) शिवदयाल कवि पांडे ( उपनाम भेष) लखनऊ। ग्रंथ-(१) स्फुट कविता (२) दशम स्कंध भागवत भाषा करीब १००० विविध छंदों में अपूर्ण । जन्मकाल-१८६६ । कविताकाल-१६२५। विवरण-ये लखनऊ रानीकटरा निवासी कान्यकुब्ज पांडे थे। इन्हें ज्योतिष में अच्छा अभ्यास था और श्राप कविता भा सोहावनी करते थे । इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में है। चित की हम ऊधौ जु बातें कहैं अवकास प्रकास न पाइ है जू; यह तुंग के तुंग तरंगन के उमहे मन कौन समाइ है जू । दुरि है हग कोर जु भेष कहूँ तो अब ब्रज फेरि बहाइ है जू , सिगरी यह रावरी ज्ञानकथा कहि कौन को कौन सुनाइ है जू ॥१॥ इस समय के अन्य कविगण नाम-(२०६८ ) असकंदगिरि, बाँदा । ग्रंथ-(१) असकंदविनोद, (२) रसमोदक (खोज १९०५) (१९०१)। कविताकाल-१६१६ ।
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy