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परिवर्तन-प्रकरण की भाँति ६७ पृष्ठ में छपे थे । रागाष्टयाम में आठ पहर के चौंसठ राग हैं और यह संवत् १९३१ में बना था। समस्याप्रकाश संवत् १९३२ में छपा था और इसमें स्फुट समस्याओं की पूतियाँ है।
(४) भंगारसरोज ११ पृष्ठ का एक छोटा-सा ग्रंथ है, जिसमें शृंगाररस के कवित्त हैं और जो संवत् १९१० में बना था।
(५) हीराजुबिली में १३ पृष्ठों द्वारा संवत् १९५३ में महारानी के साठ वर्ष राज्य करने का प्रानंद मनाया गया है।
(६) चंद्रकलाकाव्य में बूंदी की चंद्रकला बाई की प्रशंसा है। यह भी संवत् १९५३ में बना था और इसमें २० पृष्ठ हैं।
(७) अन्योक्तिमहेश्वर संवत् १९५४ में रामपुर मथुरा के ठाकुर महेश्वरबख़्श के नाम पर बना था। इसमें ५६ पृष्ठों द्वारा अन्योक्तियाँ कही गई हैं।
(८) वजराजविहार २७० पृष्ठ का एक बड़ा ग्रंथ इटौंजा के राजा इंद्रविक्रमसिंह की आज्ञानुसार संवत् १९५४ में समाप्त हुमा । इसमें श्रीकृष्णचंद्र की कथा विविध छंदों में सविस्तर वर्णित है।।
(१) प्रेमतरंग बलदेवजी की कविता का संग्रह-सा है। इसमें २३ पृष्ठ हैं, और यह संवत् १९१८ में बना था । इस ग्रंथ में स्फुट विषयों की कविता है।
(१०) बनदेवविचारार्क एकसौ पृष्ठ का गद्य-पद्यमय ग्रंथ संवत् १९६५ में बना था। इसमें पद्य का भाग बहुत ही न्यून है। इस ग्रंथ में अवस्थीजी ने बहुत-से विषयों पर अपनी अनुमति प्रकट की है, और सब विषयों में इनका यही मत है कि असंभव बातों के दिखानेवाले, ज्योतिष के कहनेवाले, बड़ी-बड़ी भड़कीली दवाइयों के बेचनेवाले आदि प्रायः वंचक हुआ करते हैं । इन्होंने यत्र-तत्र ऐसे लोगों से बचने के भी अच्छे उपाय लिखे हैं। यद्यपि अवस्थीजी अँगरेज़ी नहीं पढ़े हैं, तो भी यह ग्रंथ वर्तमान कान के