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________________ मिश्र बंधु - विनोद बीर बली सरदार जहाँ तहँ जोति बिजै नित नूतन छाजै ; दुर्ग कठोर सुडौर जहाँ तहँ भूपति संग सो नाहर जै 1 पालै प्रजाहि महीपै जहाँ तहँ संपति श्रीपति-धाम-सी राजे है चतुरंग चमू सवार पँवार तहाँ छिति छत्र बिराजै । नाम - ( १८१३) बलदेवसिंह क्षत्रिय, अवध । ; 1 १०२२ रचनाकाल - १६३०७ । विवरण - ये द्विजदेव महाराजा मानसिंह और राजा माधवसिंह अमेठी के कवितागुरु थे। इनकी कविता तोष की श्रेणी की है, जो बड़ी उत्तम, मनोहर, सानुप्रास एवं यमक-युक्त हैचंदन चमेली चोप चौसर चढ़ाय चारु, ---- मधु मदनारे सारे न्यारे रस कारे हैं ; सुगति समीर मद स्वेद मकरंद बुंद, बसन पराग सों सुगंध गंध धारे हैं। बारन बिहीन सुनि मंजुल मलिंद धुनि, बलदेव कैसे पिकवारे लाज हारे हैं ; फूलमालवारे रति बल्लरी पसारे देखौ, कंत मतवारे कै बसंत मतवारे हैं । (१८१४ ) ( पंडित प्रबीन ) पं० ठाकुरप्रसाद मिश्र ये महाशय अवध प्रदेशांतर्गत पयासी के निवासी ब्राह्मण थे और महाराजा मानसिंह अयोध्या- नरेश के यहाँ रहते थे। इनकी कविता जोरदार और सरस । हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करते हैं । हमने इनका कोई ग्रंथ नहीं देखा । [ द्वि० त्रै०रि० ] से इनके सारसंग्रह - नामक ग्रंथ का पता चलता 1 उदाहरण- भाजे भुजदंड के प्रचंड चोट बाजे बीर, सुंदरी समेत सेवें मंदर की कंदरी ;
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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