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मिश्र बंधु - विनोद
है । इनके भाव और भाषा दोनों प्रशस्त हैं। इनकी काव्यपटुता टीकाओं से विदित होती है । वर्तमानकाल में इन्होंने अपनी कविता पुराने सत्कवियों में मिला दी है । इनके शृंगारसंग्रह में घनश्रानंद के क़रीब १५० बाँके छंद मिलेंगे । इन्होंने अश्लील विषय के भी दो-चार छंद कहे हैं। हम इनकी गणना पद्माकर की श्रेणी में करेंगे ।
उदाहरण
वा दिन ते निकसो न बहोरि कै जा दिन आगि दै अंदर पैठो ; हकित हूँकत ताकत है मन माखत मार मरोर उमैठो । पीर सहीं न कहौं तुम सों सरदार विचारत चार कुटैठो ; ना कुच कंचुकी छोरौ लला कुच कंदर अंदर बंदर बैठो । मनि मंदिर चंद्रमुखी चितवै हित मंजुल मोद मवासिन को कमनीय करोरिन काम कला करि थामि रही पिय पासिन को । सरदार चहूँ दिसि छाय रहे सब छंद करा रस रासिन को मन मंद उसासन लेन लगी मुख देखि उदास खवासिन को ।
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( १८१० ) पूरनमल भाट उपनाम पूरन इनका जन्म संवत् १८७८ के लगभग हुआ । ये दरबार अलवर के कवि थे । कविता अच्छी की है। इनके पौत्र जयदेवजी अभी अलवर - दरबार में हैं। इनकी कविता साधारण है
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उदाहरण
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ललित लवंग लवलीन मलयाचल की, मंजु मृदु मारुत मनोज सुखसार मौलसिरी मालती सुमाधवी रसाल मौर, फौरन पै गुंजत मलिंदन को भार है । कोकिल कलाप कल कोमल कुलाहल कै,
पूरन प्रतिच्छ कुहू कुहू किलकार है ;
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