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परिवर्तन-प्रकरण १८७६ में जन्मे थे । स्वामी नारायणधर्म के साधु श्रीदेवानंदजी से कविता पढ़ी। उसके बाद अहमदाबाद में इनके गुरु ने अपने मंदिर में संस्कृत पढ़ाने के लिये रख दिया। अहमदाबाद के जज साहब अलेक्जेंडर किवलों के फारवर्ड साहब को इस देश की कविता जानने की इच्छा हुई । भोलानाथ साराभाई के ज़रिए से दलपतिराय को साहब ने रख लिया और इनकी सहायता से साहब ने गुजरात देश का इतिहास लिखना शुरू किया और 'राशमाला' नाम से छपाकर प्रकट किया और ईस्वी सन् १८८८ ई० में अहमदाबाद में 'गुजरात वर्नाक्यूलर सोसायटी' की स्थापना कर कवि को उनका सेक्रेटरी बनाया और हिंदी भाषा की कविता छुड़ाके अपनी देशभाषा ( गुजराती |भाषा) में कविता करने को कहा। तब से ये अपनी भाषा में कविता करने लगे। दलपतिराय का 'काव्यसंग्रह' नाम से बृहत् ग्रंथ छपाया है। इन्हीं महाशय ने स्वामी नारायण के मूलपुरुष सहजानंद स्वामी के नाम से उनका 'पुरुषोत्तममाहात्म्य' नाम का ग्रंथ बनाया है। तथा दूसरा बलरामपुर के महाराजा के लिये 'श्रवणाख्यान' नाम का ग्रंथ हिंदी में अच्छा बनाया है।
(१८०९) सरदार ये महाशय महाराज ईश्वरीप्रसाद नारायणसिंह काशी-नरेश के यहाँ थे। इनका कविताकाल संवत् १६०२ से १९४० पर्यंत रहा। इन्होंने कविप्रिया, रसिकप्रिया [खोज १६०४ ], सूर के दृष्टकूट और बिहारीसतसई पर परमोत्तम टीकाएँ गद्य में लिखी हैं। पद्य में इन्होंने साहित्यसरसी, व्यंग्यविलास ( १६१६ ), षट्ऋतु, हनुमतभूषण, तुलसीभूषण, मानसभूषण, गारसंग्रह।(१९०५), रामरनरत्नाकर, रामरसजंत्र, [ खोज १६०४ ] साहित्यसुधाकर ( १९०२ ) और रामलीलाप्रकाश [ खोज १६०३ ] ( १६०६ )-नामक अद्भुत ग्रंथ बनाए हैं । इनकी रचना में एक अलौकिक स्वाद मिलता