________________
परिवर्तन प्रकरण
१०४१
बनाए हुए पीपाप्रकाश, ज्योतिषप्रकाश और बरवै नखशिख ग्रंथ भी हैं । इनमें से वाग्विलास और बरवै नखशिखं हमारे पास प्रस्तुत हैं । ara नायिकाभेद भी अच्छा है । इसमें ६८ छंदों में नायिकाभेद का संक्षेप में वर्णन है । पंडित अंबिकादत्त व्यास ने लिखा है कि ये महाशयः एक छंदोग्रंथ भी लिखते थे, परंतु उसका कहीं पता नहीं है ।
1
इन्होंने सब विषयों पर अच्छी कविता की है। इनका पटऋतु तो बहुत ही प्रशंसनीय है । ये अपने पितामह ठाकुर की भाँति प्राशिक न थे, और इनकी कविता में वैसी तल्लीनता नहीं देख पड़ती, परंतु इनके सवैया ठाकुर की भाँति प्रसिद्ध हैं, एवं बहुत लोग इन्हें वैसा ही आदर देते हैं । इनकी भाषा व्रजभाषा है और वह सराहनीय है । ये महाशय अपने ग्रंथों में टीका के ढंग पर वार्ताओं में शंकाएँ लिखलिखकर उनका समाधान भी करते गए हैं। इनके ग्रंथों में चमत्कारिक छंद भी पाए जाते हैं, परंतु उनकी बहुतायत नहीं है। इनकी कविता में प्रशस्त छंदों की अपेक्षा साधारण छंद बहुत अधिक हैं । हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करते हैं । उदाहरणार्थं इनके कुछ छंद नीचे लिखे जाते हैं
★
;
उनए घन देखि रहैं उनए दुनए से लताद्रुम फूलो करें सुनि सेवक मत्त मयूरन के सुर दादुर ऊ अनुकूलो करें | तर दर दfar दामिनि दीह। यही मन माँह कबूलो करें ; मनभावती के सँग मैनमई घनस्याम सबै निसि भूलो करें ॥ १ ॥ दधि प्राछत- श्राछत भाल मैं देखि गए अँग के रँग छीन से है दुख औचक वारो कहे न बनै बिधु सेवक सौंह: श्ररीन से है । मृगराज के दाबे बिंधे बनसी के बिचारे मले मृगमीन से है हरि
;
बिदा को भटू के तहीं भरि आए दोऊ हग दीन से ह्वै ॥ २ ॥ बंसी बजावत श्रानि कढ़े बनिता धनी देखन को अनुरागीं ; हौं हूँ प्रभाग भरी डगरी मगरी गिरे चौंकि सबै डरि भागीं ।