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________________ मिश्र बंधु विनोद और दो ग्रंथ १०४) पजनेस शिवसिंहजी ने लिखा है कि ये महाशय पन्ना ठाकुर इन्होंने मधुप्रिया [ खोज १६०५ ] और नखशिख-न - नामक बनाए हैं । उन्होंने इनका जन्म संवत् १८७२ लिखा है । इनका कविताकाल १६०० जान पड़ता है । बुंदेलखंड में जाँच करने से भी जान पड़ा कि ये महाशय पन्ना के रहनेवाले थे । हमने इनके उपर्युक्त ग्रंथों में एक भी नहीं देखा है और न ये ग्रंथ अब साधारणतया मिलते हैं । भारतजीवन- प्रेस के स्वामी ने इनके ५६ छंदों का एक ग्रंथ पजनेसपचासा नाम से प्रकाशित किया था। फिर बहुत खोज करके पीछे उन्होंने पजनेसप्रकाश में इनके १२७ छंद छापे । इससे अधिक इनके छंद देखने में नहीं आते। इनकी कविता बड़ी sोजस्विनी है । इतनी उद्दंडता बहुत कम कवियों में पाई जाती है, परंतु इन्होंने उद्दंडता के स्नेह में मधुर भाषा को तिलांजलि दे दी, और इसी कारण इनकी कविता में टवर्ग एवं मिलित वर्णों का बाहुल्य है । इन्होंने अनुप्रास का बड़ा आदर किया तथा जमकानुप्रास का भी विशेष प्रयोग इनकी रचना में हुआ है, परंतु भाषा व्रजभाषा ही है । फिर भी एकाध स्थान पर फ़ारसी मिली कविता भी श्रापने बनाई। इनकी रचना देखने से विदित होता है कि ये फ़ारसी और संस्कृत के पंडित थे । इनकी कविता में अश्लीलता की मात्रा विशेष है । इन्होंने उपमाएँ बहुत अच्छी खोज-खोजकर दी हैं । कुल मिलाकर हम इनको सुकवि समझते हैं, क्योंकि इनके छंद बहुत ललित बने हैं । इतने कम छंदों में इतने उत्तम छंद बहुत कम कविजन बना सके हैं। हम इनको पद्माकर की श्रेणी में रखते हैं। इनके छंद थोड़े होने पर भी बहुत फैले हुए हैं, अतः हम इनका एक ही छंद यहाँ लिखते हैंमानसी पूजा मई पजनेस मलिच्छन हीन करी ठकुराई; रोके उदोत सबै सुर गोत बसेरन पै सिकराली बसाई । १०३८ में हुए
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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