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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 93 परम प्रज्ञा की एक पूर्ण रचना होने और मनुष्य को ईश्वरीय सृष्टि की सर्वोच्च सत्ता होने के प्रति दार्शनिक निष्ठा, तो दूसरी ओर दुनियादारी के सभी उद्देश्यों एवं इच्छाओं के सभी विषयों के प्रति एक दार्शनिक उपेक्षा-वृत्ति और इसके परिणामस्वरूप उन सभी मनुष्यों के प्रति, जिनसे हमारा दार्शनिक सृष्टि से सम्बंध है, के प्रति ‘परता' का अपरिहार्य भाव। एक ओर मरकुस आरलिअस उस प्रज्ञापूर्ण व्यवस्था पर विचार करता है, जिसमें सभी वस्तुएं पवित्र बंधन में एक-दूसरे से बंधी हुई हैं, निम्न श्रेणी की वस्तुएं अपने से उच्च श्रेणी की वस्तुओं के लिए है और एक दूसरे के साथ संगतिपूर्ण रूप से रही हुई हैं, किंतु साथ ही वह यह भी मानता है कि सभी इन्द्रिय-गोचर वस्तुएं विनाशशील और तिरस्कार के योग्य हैं। बच्चों के खेल और झगड़ों के समान, चीटियों के श्रम के समान या कठपुतली के समान ये सारी सांसारिक घटनाएं क्षणिक एवं निरर्थक है तथा परिवर्तन के प्रवाह में बह रही है। अथवा संसार एक ऐसी प्रचण्ड वेग धारा है जिसके बीच एक प्रज्ञावान मनुष्य उस अंतद्वीप के समान खड़ा है जिसे मिटाने के लिए वे धाराएं सतत् रूप से संघर्षरत है। सारे संसार की प्रत्येक वस्तु एवं जीवन का प्रत्येक अंश वैसा ही गंदा, घृणित और अधम है, जैसा कि स्नान के तेल, पसीने, मल और शरीर से निकला हुआ पानी। वह स्वयं ही अपने से कहता है कि मृत्यु वरेण्य है और उससे प्रकृति की एक घटना मानकर उसके आलिंगन के लिए तैयार रहना चाहिए, किंतु वस्तुतः जो उसे मृत्यु के साथ जोड़ता है, वह है वस्तुओं एवं चरित्र का विचार, जिससे मृत्यु उससे अलग कर देती है। यथार्थ और आदर्श के बीच का यह अंतराल एक अच्छे एवं सुंदर संसार की कल्पना के द्वारा भी पूरा नहीं जा सकता। यद्यपि स्टोइक सम्प्रदाय परम्परागत रूप से मृत्यु के पश्चात् भी वैयक्तिक जीवन के अस्तित्व को तब तक बने रहने की धारणा में विश्वास करता है, जब तक कि महाप्रलय न हो, जिस महाप्रलय के द्वारा प्रत्येक सृष्टि के युग का अंत होता है और जिसमें संसार की सभी वस्तुएं पुनः अपने मौलिक द्रव्य या ईश्वरीय तत्त्व, जिससे कि वे उत्पन्न हुई थीं, को प्राप्त हो जाती है, तथापि उन्होंने अपनी इस धारणा के आधार पर नैतिक शिक्षाओं पर कोई भार नहीं दिया। स्टोइकवाद की इस युग में यह धारणा संशयात्मक रूप से ही स्वीकार की जाती रही, यद्यपि इसे पूरी तरह समाप्त नहीं किया गया था। मरकुस आरलिअस ने इस प्रश्न को नहीं उठाया है कि मृत्यु क्या मात्र (शरीर) परिवर्तन है या अस्तित्व का समाप्त हो जाना है? क्या यह दूसरे जीवन में संक्रमण है अथवा एक संवेदनशील अवस्था है? यद्यपि कभी-कभी वह एक निषेधात्मक दृष्टिकोण के प्रति
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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