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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/92 पर निवास अथवा एक तूफानी समुद्र में यात्रा है", जहां कि मृत्यु ही एकमात्र स्वर्ग (मुक्ति) है। मरकुस आरलियस (120-180 ई.) परवर्ती स्टोइकवाद की धार्मिकता स्टोइक साम्राज्य मरकुस आरलिअस, एन्टोनीनस्ट के चिंतन में एक विशिष्ट भावनात्मकता से अनुप्रमाणित होती है। वे कहते हैं कि 'हे विश्वात्मा जो तेरे लिए सामंजस्यपूर्ण है, वह मेरे लिए भी सामंजस्य पूर्ण है, जो तेरे लिए समयानुसार है वह मेरे लिए समयानुकूल है, हे प्रकृति तेरे ऋतु जिसे लाती है वे सभी मेरे लिए फल है। सभी वस्तु तुझमे है और तुझमे ही लौट जाती है।' कवि कहता है कि परमप्रिय सेसरोप का नगर क्या ईश्वर का परमप्रिय नगर नहीं है। मरकुस आरलिअस एन्टोनीन के सम्प्रदाय के भावनात्मक लक्षणों की ये भाव प्रवण अभिव्यक्तियां है जो कि हमें उपलब्ध है। ईश्वर के साथ अपने सम्बंध का स्मरण करना और उस ईश्वर से जोड़ने वाले धागों को पुष्ट करना जो कि प्रत्येक मनुष्य के हृदय में विश्वात्मा के रूप में शासन करता है और यह आत्मा भी जिसकी ही एक अंश है, देवताओं के साथ रहना और केवल वही करना, जिसके लिए ईश्वर अनुज्ञा देता है, जो कुछ ईश्वर देता है, उसे प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण करना, सभी अवसरों पर देवताओं को आमंत्रित करना और ईश्वर का विचार करते हुए एक सामाजिक कार्य के बाद दूसरे सामाजिक कार्य को करते जाना. ये ही वे शिक्षाएं हैं, जो उसके आत्म प्रबोधन में बार-बार प्रकट होती हैं। अच्छे जीवन को जीने का सूत्र है- 'देवताओं के प्रति श्रद्धा और मनुष्यों की सहायता', इस सूत्र के दोनों हीअंशअविभाज्य है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त शक्ति से दूसरे बुद्धिमान प्राणियों की सहायता नहीं करना और अन्याय करना अपने-आप में एक अपवित्रता है। मरकुस आलिअस अपनी लोकोपकार की धारणा में असमर्थ के प्रति सदयता और सहानुभूति की जितनी अपेक्षा करता है, वह प्रारम्भिक स्टोइकों के गम्भीर एवं निरपेक्ष विश्वबंधुत्व में नहीं की गई है। सामाजिक एवं बौद्धिक प्राणियों की विश्व-व्यवस्था के सदस्य के रूप में व्यक्ति का साध्य मात्र अपना कर्तव्य करना ही नहीं है, वरन् सभी मनुष्यों के प्रति हृदय से प्रेम करना है। इतना ही नहीं, यह सोचकर कि जो अज्ञान के कारण गलती करते हैं, वे भी हमारे सजातीय हैं, बुराई करने वालों को भी प्रेम करना है, साथ ही उसके निष्पक्ष एवं प्रभावकारी उपदेशों के प्रति अनिवार्यतया अंधविश्वास हमारे सामने समन्वय सम्बंधी भिन्न कठिनाई को उपस्थित कर देते हैं। एक ओर सम्पूर्ण सृष्टि को
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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