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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/86 आर्केसिलअस का प्लेटो को उस ऐन्द्रिक बोध की परम्परागत निश्चितता का निषेध करने वाला मानना ठीक था।
यह स्टोइक विरोधाभास है, जिसे स्टोइकों ने ग्रहणशील संस्कार माना था। आर्केसिलिकस का यह मानना भी ठीक लगता है कि प्लेटो ने यह शिक्षा दी थी कि संभाव्यता को कल्याण की दिशा में मनुष्य का मार्गदर्शन होना चाहिए। आर्कसिलिअस के नैतिक शिक्षाओं के संबंध में विस्तार से हम बहुत कम जानते हैं, किंतु उसके विद्वान उत्तराधिकारी कार्नेडिस (जन्म 213 ई.पू. मृत्यु 128 ई.पू.) ने नैतिक दृष्टि से उसके सदेहवाद का उपयोग एक खतरनाक पद्धति के रूप में किया। यह कहा जाता है कि रोम में (155 ई.पू.) दार्शनिकों के सुप्रसिद्ध प्रतिनिधित्व के अवसर पर एक दिन न्याय के पक्ष में तर्क उपस्थित करते हुए उसने अपने भाषण से रोमन युवकों में एक जोश पैदा कर दिया था, किंतु दूसरे दिन अपने खुद के तर्क का ही सफलतापूर्वक प्रतिषेध भी कर दिया। आंशिक रूप से सम्भवतया संदेहवाद की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण व्यावहारिक सुनिश्चिता प्राप्त करने की इच्छा के कारण अकादमी को अपने सदैहवाद की स्थिति से पुनः एक प्रकार के समन्वयवाद की ओर लौटना पड़ा, जिसमें स्टोइक सिद्धांतों के सर्वाधिक उच्छृखल तत्त्वों को कम करके प्लेटो और अरस्तु की नैतिक शिक्षाओं के समान ही कुछ उपदेश दिए गए थे। एस्कालन में ऐन्टिओकस' ने अपने व्याख्यानों के द्वारा इस परिवर्तन को पूर्णता तक पहुंचाया है। उसने ये व्याख्यान सन् 91 ई.पू. में सिसरो की उपस्थिति में अकादमी के अध्यक्ष की हैसियत से दिए थे। इसी प्रकार की समन्वय की प्रवृत्ति हम स्टोइकवाद में, विशेष रूप से पेनेटिअस में भी देखते हैं, जिसने ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के उत्तरार्ध में एथेन्स में इस सम्प्रदाय की अध्यक्षता की थी। हमें यह समन्वयात्मक प्रवृत्ति अरस्तू के चंक्रमण सम्प्रदाय में भी दिखाई देती है। इन समन्वयात्मक प्रवृत्ति का व्यापक प्रभाव यह हुआ कि स्टोइक अकादमी के सदस्य और अरस्तू के चंक्रमण सम्प्रदाय के द्वारा एक ही नैतिक सिद्धांत समान रूप से स्वीकृत हुआ, जिसके मुख्य तत्व अपने उद्भव की दृष्टि से स्टोइक थे। स्टोइकवाद और इन दूसरे दो सम्प्रदायों की परम्पराओं में मुख्य विरोध कर्तव्य और सद्गुण के घटकों के निर्धारण के आधार पर नहीं, किंतु सद्गुण किस सीमा तक कल्याण (शुभ) के लिए सक्षम है' इस प्रश्न पर था। दोनों ही अवस्थाओं में इस समन्वयवादी प्रवृत्ति का ग्रीक दर्शन के रोम में विकसित विचार वृत के द्वारा समर्थन हुआ, क्योंकि व्यावहारिक रोमन चेतना सदेहवाद और स्टोइकवाद