________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/84 राजनीतिक विराग, वाद विवादों से विमुखता, सादा जीवन और अविक्षुब्ध विश्रान्ति के आधारों पर सरलतापूर्वक उपलब्ध किया जा सकता है। इस सबका अनुगमन आकस्मिक रूप से अणुओं के मिलन से निर्मित इस दुनिया से परे पृथक् देवताओं के शाश्वत सुख के अनुगमन के समान है। परवर्ती ग्रीक दर्शन
समानान्तर रूप से उत्पन्न एवं विकसित जिन दो दर्शनों का हमने अभी विवेचन किया है, उन्होंने जहां तक कि नीतिशास्त्र का सवाल है ईसा की दूसरी शताब्दी के अंत तक, जबकि स्टोइकवाद पूरी तरह समाप्त हो गया था। अधिक प्रभाव पूर्ण ढंग से प्राचीन विश्व का ध्यान आकर्षित किया था। किंतु इन दोनों सम्प्रदायों के साथ ही साथ प्लेंटो और अरस्तू के सम्प्रदाय भी अपनी परम्परा की अविच्छिन्नता तथा कम या अधिक रूप में सशक्त जीवन्तता को बनाए हुए थे। ग्रीक रोमन संस्कृति के स्वीकृत तथ्य के रूप में दर्शन इन चारों शाखाओं में बंटा हुआ माना जाता था। यद्यपि इन चारों सम्प्रदायों का आंतरिक इतिहास भिन्न-भिन्न था। हम अरस्तू के नीतिशास्त्र में कोई भी ध्यान देने योग्य विकास नहीं पाते हैं। अरस्तू के अनुयायियों की दार्शनिक शक्ति अपने गुरु की व्यापक प्रतिभा के उत्तराधिकार से किसी प्रकार दब गई थी+2
और उनके बहुमुखी क्रियाकलापों के उदाहरणों से विभ्रांत हो गई थी। पुनः, इपीक्यूरीयनों के सम्प्रदाय अपने प्रवर्तक की मान्यताओं की, बिना किसी विकल्प के स्वीकृति के आधार पर एक दार्शनिक सम्प्रदाय के स्थान पर धर्म पंथ कहे जाने के योग्य बनाए गए थे। दूसरी ओर, प्लेटो के दार्शनिक सम्प्रदाय की परम्परा का बाहरी प्रारूप परिवर्तनों के कारण बहुत कुछ रूप में विकृत हुआ है, इसीलिए दर्शन के इतिहासकार उसके सम्प्रदाय को एक दार्शनिक सम्प्रदाय (अकादमी) नहीं, वरन् अनेक सम्प्रदाय (अकादमी) मानते हैं। हमें पुरानी अकादमी के नैतिक सिद्धांत के दो मुख्य रूप देखने को मिलते हैं, जिन्होंने शीघ्र ही अपने गुरु यानी प्लेटो की मुख्य अकादमी का स्थान ले लिया3 - (1) स्पीयूसिपस के मार्गदर्शन में इस बात को अस्वीकार कर दिया गया कि सुख मानवीय कल्याण का एक अंग (घटक) है और इसके साथ ही प्रकृति की अनुरूपता को मुख्य व्यावहारिक सिद्धांत मान लिया था। इन दोनों विचारों ने पुरानी अकादमी को स्टोइकवाद के निकट ला दिया। वस्तुतः इन दो सिद्धांतों में सुनिश्चित अंतर यह था कि स्टोइको ने