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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 83 की अभिव्यक्ति के प्रकार हैं, किंतु यह बात इतनी स्पष्ट नहीं है कि इपीक्यूरीयन मनीषी सदैव ही न्यायी होगा। शायद वह न्याय को स्वतः शुभ स्वीकार नहीं करेगा। इपीक्यूरस का कहना है कि स्वाभाविक न्याय केवल नुकसान को रोकने के लिए स्वार्थों का समझौता है। निस्संदेह मनीषी भी अपने साथियों के द्वारा किए जाने वाले नुकसान से बचने के लिए इस समझौते को स्वीकार करेगा, किंतु यदि वह यह पाता है कि छद्म अन्याय सुविधाजनक एवं संभव है, तो वह इसका पालन क्यों करेगा? इपीक्यूरस स्पष्ट रूप से यह स्वीकार करते हैं कि उनका उद्देश्य व्यक्ति को दुःखद चिंताओं से मुक्त करना है, क्योंकि ( वस्तुओं की ) प्राप्ति की सतत् आकांक्षा अपरिहार्य होगी, किंतु वे यह मानते हैं कि उनका यह उद्देश्य संगतिपूर्ण है और न्याय वास्तविक सुखद जीवन से अवियोज्य है। इसी प्रकार का एक सच्चा, किंतु आंशिक सफल प्रयत्न अपने स्वहितवादी सुखवाद को समाज विरोधी निष्कर्षों से मुक्त रखने के लिए मित्रता के मूल्य के बहुत ही अधिक उन्नयन में मिलता है। वे यह मानते हैं कि मित्रता पूरी तरह से पारस्परिक उपयोगिता पर निर्भर है फिर भी एक मनीषी अवसर आने पर मित्र के लिए अपना जीवन दे देगा। मित्रों के सहित शुभों के समुदाय को पूर्ण करने में उनकी आंपत्ति यह है कि इस सुझाव में पारस्परिक पूर्ण विश्वास के मित्रता के गुण का अभाव परिलक्षित होता है। ये कथन अधिक आश्चर्यजनक हैं क्योंकि अनेक स्थितियों
पक्यूरस का आदर्श मनीषी मानवीय सम्बंधों से एक विवेकपूर्ण निर्लिप्तता का परिचय देगा, वह न प्रेम ही करेगा, न परिवार का पिता ही बनेगा और न किसी आपवादिक स्थिति के अतिरिक्त राजनीतिक जीवन में ही प्रवेश करेगा। वस्तुतः विशुद्ध स्वहित पर आधारित निष्ठापूर्ण मित्रता का यह विरोधाभास इपीक्यूरस की शिक्षाओं के उन विचार बिंदुओं में से एक है, जिन पर इपीक्यूरीयनों में मतवैभिन्य तथा असमंजस पाया जाता है। यद्यपि इपीक्यूरीयनों ने इपीक्यूरस के इस सिद्धांत को पूरी तरह स्वीकार किया, तथापि उसकी भिन्न भिन्न व्यवस्थाएं की।" इपीक्यूरस एक उत्साही, ममतामय और विशेष रूप से आंतरिक सहानुभूतियों का व्यक्ति था। उसके व्यक्तित्व की इन विशेषताओं ने उसकी शिक्षाओं की तार्किक संगतियों में जो कमी थी, उसकी पूर्ति की है, ऐसा हम विश्वास कर सकते हैं। उसने दार्शनिक वर्ग के जिस सामाजिक भाईचारे का अपने बगीचे में संवर्द्धन किया था, वह उसके सम्प्रदाय का आश्चर्यजनक तथ्य रहा है। मनीषियों के संगतिपूर्ण एवं सुचारू रूप से चलने वाले भाईचारे के जिस आदर्श का स्टाइको और इपीक्यूरस ने साथ साथ पोषण किया था, वह इपीक्यूरीयनों के