SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 59 अरस्तू का सद्गुण सम्बंधी सिद्धांत प्रारम्भ में हम नैतिक उत्तमता (प्रकर्ष) या सीमित अर्थ में सद्गुण की सामान्य परिभाषा पर विचार करेंगे। इस पद का अर्थ केवल स्वाभाविक अनुभूति या अनुभूत्यात्मक नवावेश अर्थात् क्रोध, भय, घृणा आदि नहीं माना जा सकता है ? क्योंकि मात्र इस रूप में वे प्रशंसा या निंदा के विषय नहीं है। इसका तात्पर्य एक ऐसी परिपक्व आदत है, जो ऐसे नियम एवं अनुशासन के अंतर्गत किसी क्रिया को बार-बार करने से निर्मित होती है, और जिसमें अनुचित के आधिक्य और अनुचित की कमी से बचने का प्रयास किया गया हो और जिसमें पूर्ण वर्णित स्वाभाविक संवेगों का सीमित एवं नियंत्रित रूप से संवेदन किया गया हो, ताकि सद्गुणी व्यक्ति बिना किसी आंतरिक संघर्ष के कर्म-संकल्प कर सके और उस कर्म संकल्प को अपने परिणामों में प्रकट कर सके। सद्गुण भी तांत्रिक कौशल (कर्मकौशल) के समान ही अभ्यास का परिणाम है, किंतु सद्गुण कर्म-कौशल से इस अर्थ में भिन्न है कि सद्गुणात्मक कार्यों का ऐच्छिक चयन उनके आंतरिक नैतिक सौंदर्य के लिए होता है, किसी बाह्य साध्य की सिद्धि के लिए नहीं होता है। सुकरात के सद्गुण सम्बंधी विचारों में प्लेटो द्वारा किए गए संशोधन और विकास के आधार पर निष्कर्ष निकालते हुए अरस्तू सद्गुण सम्बंधी सामान्य धारणा को क्रमशः आगे ले जाते हैं। अरस्तू की विशेष सद्गुणों की सूचि आंशिक रूप से प्लेटो के आधार पर बनाई गई है और प्लेटो की उस सूचि में जन-सामान्य की धारणाओं के आधार पर वृद्धि की गई है तथा सहज बुद्धि के प्रति अपनी निष्ठा के आधार पर उन्हें परिभाषित किया गया है, किंतु अरस्तू और प्लेटो मुख्य सद्गुण सम्बंधी विवेचना में एक दूसरे से भिन्न हो जाते हैं। प्लेटो सामान्यतया स्वीकृत सद्गुणों की मूलभूत एकता तथा उनकी पारस्परिक अंतर्निहितता को स्वीकार करते हैं और अपने विवरण में प्रत्येक सद्गुण को इतना व्यापक बनाते हैं कि उसे सामान्य सद्गुण माना जा सके, जबकि वे उन पदों को जन-साधारण की धारणाओं से लेकर भी अपनी विश्लेषणात्मक बुद्धि और आगमन पद्धति के आधार पर उन्हें संकीर्ण रूप में परिभाषित करते हैं। प्रज्ञा तथा ईमानदारी के प्रत्ययों को स्वतंत्र विवेचना के लिए छोड़कर वे साहस और संयम से अपनी विवेचना प्रारम्भ करते हैं। वे प्लेटो के समान साहस और संयम को आत्मा के अबौद्धिक पक्ष की अच्छाई
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy