SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 57 किए जाते हैं, इसलिए कोई भी हो परम साध्य अवश्य ही होना चाहिए। वह विज्ञान या अध्ययन जो कि इस चरम साध्य की खोज करता है वह उन सभी कलाओं का नियामक होगा जिनकी उपयोगिता है या जिनका कोई विशेष साध्य हैं। हम देखते हैं कि मनुष्य सामान्यतया किन्हीं साध्यों को स्वीकार कर लेता है और हम उस साध्य को कल्याण करने में समर्थ होने के बारे में सहमत भी हो सकते हैं18, किंतु उन साध्यों के स्वरूप के सम्बंध में मनुष्यों के विचार भिन्न भिन्न होते हैं, तो हम किस प्रकार सही दृष्टिकोण को प्राप्त कर सकते हैं? हम यह जानते हैं कि मनुष्यों को उनके कार्यों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है और उसी आधार पर सम्बोधित किया जाता है जैसे सुनार, लुहार आदिसभी प्रकार के मनुष्यों और मनुष्य शरीर के सभी अंगों के अलग-अलग विशेष कार्य हैं और कार्य करने वाले का या अंगों का मूल्यांकन भी उनके कार्यों के आधार पर ही होता है, वे अपने कार्य करने के ढंग पर ही अच्छे या बुरे कहे जाएंगे। इस आधार पर क्या हम यह अनुमान नहीं कर सकते हैं कि मनुष्य का मनुष्य के रूप में विशेष कार्य है और उसका कल्याण या उसके कर्मों का शुभत्व मनुष्य के लिए नियत कार्य को मानवीय अस्तित्व की सामान्य विशिष्टता अर्थात् बौद्धिकता के द्वारा सम्यक् प्रकार से सम्पादित करने में है। यही बौद्धिकता ही मनुष्य का विशिष्ट गुण है। पुनश्चद्व जनसाधारण के विचारों के प्रति सुकरातीय आदर केवल उन्हीं रूपों में ही प्रकट नहीं हुआ है, जिनके आधार पर अरस्तू अपनी मौलिक धारणा पर पहुंचता है, वरन् उसने इस धारणा की जिस ढंग से विवेचना की है, उसमें भी समान रूप से परिलक्षित होता है, यद्यपि प्रथमतः अरस्तू की दृष्टि में पूर्णशुभ (पूर्ण कल्याण) मनुष्य का अपने दिव्य-पक्ष अर्थात् शुद्ध तार्किक बुद्धि के उपयोग में निहित है। मानवीय शुभ की इस धारणा के और केवल इसी धारणा के प्रस्तुतिकरण के द्वारा वे अपने को विरोधाभास से दूर रखते हैं। उनके ग्रंथ के एक बड़े भाग में उन निम्न श्रेणी शुभों की विवेचना की गई है, जिनकी क्षुधात्मक या वासनात्मक (अर्द्ध-बौद्धिक)पक्ष की क्रियाशीलता के द्वारा एवं बुद्धि के नियंत्रण में व्यावहारिक जीवन में उपलब्धि की जाती है। इस प्रकार कर्म-कौशल को व्यापक बनाया गया है और उसे सुख के साथ जोड़ दिया गया है। वस्तुतः सुख ऐसे कौशलयुक्त कार्यों से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, फिर भी यह उसका पूरी तरह से पर्यायवाची नहीं है, जिसे ग्रीक नागरिक मानवीय कल्याण (शुभ) के लिए अनिवार्य जानते थे। वस्तुतः हम यह मान सकते हैं कि
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy