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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 52 नहीं, मनुष्य के सम्बंध में विचार कर रहे हों, तो हमें यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि जिस उत्कृष्ट एवं उच्च जीवन की हम प्रशंसा करते हैं, वह जीवन वही है, जिसमें दुःखों की अपेक्षा सुखों की अधिकता है। यद्यपि प्लेटो ने उत्कृष्ट (सर्वोत्तम) और सुखप्रद में महत्वपूर्ण, वास्तविक एवं अवियोग्य सम्बंध माना है, तथापि वह सुख पर यह बल केवल जन साधारण के लिए ही देता है। फिलेक्स में सुख और प्रज्ञा के दावों के मध्य दार्शनिक दृष्टि से की गई तुलना में उसने सुख को पूरी तरह से एक बुराई या निम्न कोटि का बताया है। 14 यद्यपि यथार्थ मानवीय शुभ के घटकों के पूर्ण विवरण में रंग, रूप और स्वर सम्बंधी सुखों तथा बौद्धिक व्यायाम अन्य सुखों एवं क्षुधाओं की आवश्यक संतुष्टियों का स्थान स्वीकार किया गया है, किंतु उन्हें निम्नकोटि का ही माना गया है। इसके साथ ही अपने परवर्ती विचारों में वह ऐन्द्रिक एवं स्थूल संतुष्टियों सम्बंधी सुख के घनात्मक गुणों का निषेध करने सम्बंधी अतिवादिता से भी बचता है। निश्चित ही वे शरीर के अंगों को अपनी स्वाभाविक दशा में लाने के लिए की गई परिपूर्तियों की अवस्थाएं हैं, जिनमें सुखनिहित है । वे यह मानते हैं कि ऐन्द्रिक संतुष्टियों का सुख सम्बंधी सामान्य मूल्यांकन बहुत अधिक सीमा तक भ्रांतियुक्त ही होता है। उनमें सुख की असत् प्रतीति शारीरिक अंगों की पूर्ववर्ति या सहचारी दुखद अवस्थाओं से उनके विरोधी होने के कारण उत्पन्न होती है। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि शुभ और सुख के सम्बंध के बारे में किसी प्रकार का पेचीदा (उलझन भरा) और सूक्ष्म (नाजुक) संतुलित दृष्टिकोण प्लेटो के सम्प्रदाय में अधिक समय तक मान्य नहीं रह सका और जैसा कि हमें अरस्तू के खंडन से ज्ञात होता है, प्लेटो के उत्तराधिकारी स्पेयूसीयस के प्रभाव से बाद में प्लेटोवादियों के मुख्य वर्ग सुखवाद विरोधी दृष्टिकोण अपना लिया था। प्लेटो और अरस्तू जब एक अध्येता प्लेटो से अरस्तू की ओर जाता है, तो वह तत्काल इन दोनों दार्शनिकों के सोचने समझने के ढंग और उनकी साहित्यिक रुझान सम्बंधी विरोध से अवगत हो जाता है। यह समझना सरल है कि क्यों उनकी विचार प्रणालियां की सामान्य तथा व्यवहारिक रूप में एक दूसरे की विरोधी मानी जाती है। अपने तत्त्वमीमांसा एवं नीतिशास्त्र सम्बंधी ग्रंथों में प्लेटो और प्लेटोवादियों की अरस्तू के द्वारा की गई आलोचना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है, तो भी प्लेटो की मृत्यु के दो शताब्दी के पश्चात् एस्कालन के एन्टीओकस
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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