SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 37 प्रमुख थे। मात्र परम्पराओं या आवेगों के स्थान पर किसी संगतिपूर्ण सिद्धांत के द्वारा जीवन के कर्त्तव्यों की स्पष्ट स्वीकृति, इस बौद्धिक विवेक के द्वारा जीवन को प्रदत्त नवान मूल्यों की अनुभूति और सुकरात के समान सहज, शांत, अविचल एवं स्थिर मनः स्थिति को बनाए रखने के लिए उनके प्रयत्न ही वे आधार हैं, जिनके द्वारा हम एंटिस्थेनीज और एरिस्टिपस को सुकरातीय परम्परा का मानते हैं, न कि वह पूर्णता जिससे वे गु. के विधायक सिद्धांतों को दो परस्पर विरोधी अर्द्धवृत्तों में विभाजित करते हैं। इनके परस्पर विरोधी सिद्धांतों से हम यह कह सकते हैं कि जहां एरिस्टिपस सुकरात के उपदेशों की स्पष्ट सैद्धांतिक एकता को निगमित करने के लिए असंदिग्ध तार्किक प्रक्रिया को अपनाते हैं, वहां ऐन्टिस्थेनीज सुकरात के जीवन से स्वाभाविक निष्कर्ष निकालते हैं। एरस्टिपस एवं सिरेनेक्स एरिस्टिपस का कथन है कि आचरण में जो कुछ सुंदर और प्रशंसनीय है, वह उसकी उपयोगिता के गुण के कारण है और उपयोगी होने का तात्पर्य किसी अग्रिम शुभ का उत्पादक होना है। यदि सद्कार्य वस्तुतः वह कार्य है, जो इस शुभ के साधन के रूप में अंतर्दृष्टि और बौद्धिक विवेक के द्वारा किया जाए, तो निश्चित ही यह शुभ 'सुख' ही होगा। सभी अविकृत आवेग वाले प्राणी इस सुख को पाना चाहते हैं और इसके विरोधी दुःख से बचना चाहते हैं। अपने इस सुखवाद की पुष्टि के लिए वे उस सिद्धांत के द्वारा तात्त्विक आधार प्रस्तुत करते हैं, जिसके अनुसार बाह्य वस्तुओं के सम्बंध में हम हमारे मन पर पड़ने पर संस्कारों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं जान सकते हैं। प्रोटागोरस का सापेक्षवाद उन्हें इस सिद्धांत की ओर ले गया। इस सिद्धांत का सीधा निष्कर्ष यह है कि इंद्रियों की निर्बाध गति, जिसे हम सुख कहते हैं, एक सज्ञेय शुभ है, चाहे वह फिर किसी भी स्रोत से आया हो। किसी भी प्रकार का सुख अपनेआप में दूसरे सुख से श्रेष्ठ नहीं होता है (अर्थात् सभी सुख समान स्तर के हैं), यद्यपि सुखों के कुछ प्रकार अपने दुःखद परिणामों के कारण त्याज्य माने जाते हैं। एरस्टिपस शारीरिक सुखों एवंदुःखों को ही सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। यद्यपि वे अपने भौतिकवादी सिद्धांत के आधार पर यह मानते हों, ऐसा प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि उन्होंने विशुद्ध मानसिक सुखों के अस्तित्व को भी स्वीकार किया है, उदाहरणार्थ अपनी मातृभूमि की समृद्धि को देखकर होने वाला सुख। एरस्टिपस यह मानते हैं कि उनके द्वारा प्रतिपादित शुभ क्षणिक है और उसे केवल क्रमिक रूप से अनेक अंशों में ही प्राप्त
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy