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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 35 वे हमारे सामाजिक क्रियाकलापों से संबंधित हो या नहीं। वैयक्तिक जीवन के क्रियाकलापों से संबंधित अथवा वैयक्तिक जीवन के क्रिया-कलापों से मानवीय आवश्यकता की पूर्ति में सहायक साधारण-सी कला के प्रति भी उनके द्वारा दिया गया यह ज्ञान उनकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है। जैसाकि हम पूर्व में बता चुके हैं, उन्होंने भौतिक विश्व के संबंध में मात्र काल्पनिक विमर्श को व्यर्थ और अनुपयोगी माना है। यद्यपि उन्होंने यह स्वीकार किया है कि बाह्य वस्तुओं को मानव के लिए उपयोगी बनाने में हमारे क्रिया-कलापों का एक बहुत बड़ा भाग लग जाता है और इसलिए वस्तुओं और उनके गुणों का ज्ञान, जहां तक कि वे उपयोगी हैं, पूर्ण बौद्धिक आचरण के लिए आवश्यक है। वस्तुतः यह ज्ञान भी किसी दृष्टि से शुभ का ज्ञान' है। यह उस सापेक्षिक शुभ का ज्ञान है, जो कि जीवन के वास्तविक साध्य का साधन है। इस प्रकार सुकरात की दृष्टि में किसी भी बौद्धिक एवं सार्थक मानवीय श्रम का महत्व एवं मूल्य तभी है जब वह सामान्यतया सभ्य ग्रीक नागरिकों में निम्नकोटि के यांत्रिक एवं कठिन श्रम के प्रति पाई जाने वाली घृणा का मूलतः विरोधी हो। झेनोफोन ने सुकरात और एक कवच-निर्माता के बीच हुए एक संवाद को विस्तारपूर्वक उद्धृत किया है, जिसमें सुकरात कवच बनाने की सूक्ष्मताओं का पता लगाते हैं। यह भी देखने में आता है कि उनके वार्तालाप या संवादों का इसलिए उपहास किया जाता रहा है कि वे सदैव ही निम्न कोटि के व्यवसायों से अपने उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। वे हमेशा चमार, सुतार, ठठेरे और गडरियों का ही राग अलापते हैं। प्लेटो ने अपने ग्रंथ में न्यायाधीशों के सम्मुख सुकरात को अपने बचाव में निम्न तर्क देते हुए प्रस्तुत किया है। सुकरात कहते हैं कि 'सामान्य शिल्पी अपने व्यावसायिक ज्ञान के सम्बंध में राजनीतिज्ञों और प्राध्यापकों से भिन्न होता है। मानव जीवन के रूपांतरण के महान्कार्य में निश्चित साध्यों की प्राप्ति के लिए पूर्णतया बौद्धिक साधनों के उपयोग में निम्नकोटि के शिल्प ने मार्गदर्शन किया है और प्रगति की इस दौड़ में वे आगे निकल गए हैं। उन्हें जो कुछ सीखना था उसका बहुत बड़ा भाग वे सीख चुके हैं, जबकि जीवन की उच्च कलाएं और प्रशासन अभी भी अपनी प्रारम्भिक अवस्थाओं में ही संघर्षरत है। इस प्रकार यदि हम उनकी शिक्षाओं और चरित्र दोनों पर ही विचार करें और हमें ऐसा करना भी चाहिए, तो नैतिक-दर्शन के इस महान् अधिष्ठाता में निम्नलिखित ऐतिहासिक महत्व की विशेषताएं परिलक्षित होती हैं (1) एक ऐसे ज्ञान के प्रति तीव्र जिज्ञासा, जो हमे अभी प्राप्त नहीं है, किंतु यदि वह प्राप्त हो जाएगा, तो मानवीय
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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