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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/301 जाता है। यह आध्यात्मिक-जीवन उस व्यक्ति में केंद्रित है, जिसकी आत्मसंस्कृति स्वयं में ही निहित है, फिर भी उसकी यह आत्मसंस्कृति मानव-समाज की जटिलता में दूसरों के साथ उसके सम्बंधों और सहयोग पर आधारित है। इस प्रकार, आध्यात्मिक-जीवन अपने में उस सभी को समाविष्ट करता है, जिसका जीवन जीने के संकुचित दृष्टिकोण में भी थोड़ा-सा मूल्य है, लेकिन जीवन की संकुचित दृष्टि जिन शुभों को प्रस्तुत करती है, वे मनुष्य पर थोपे नहीं जा सकते। उन्हें उसकी आत्मा की क्रियाशीलता के द्वारा पूर्णतया आत्मसात् होना होगा, इसीलिए आध्यात्मिक-जीवन आत्मनिर्भर और स्वतंत्र कहा जाता है। जीवन एक ऐसी प्रक्रिया है, जो कि सतत रूप से अपने घटकों के संगठन और विस्तार में लगी हुई है। इस प्रकार, यूकेन के नैतिक-दर्शन की प्रेरणा को मूलतया आध्यात्मिकस्वतंत्रता और व्यापक दृष्टिकोण के मूलभूत प्रेरकों में देखा जा सकता है। एक नैतिककर्ता किसी भी समय अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठकर प्रगति करने की क्षमता और स्वतंत्रता रखता है। वे सब बातें व्यक्ति के लिए सच्चे अर्थ में कुछ भी मूल्य नहीं रखती हैं, जिन्हें वह अपनी क्रियाओं के द्वारा आत्मसात् नहीं कर सकता है। शुभ संकल्प वह संकल्प है कि अपनी सम्भावित सीमाओं में रहकर भी मूल्यों के एक व्यापक क्षेत्र को अपना उद्देश्य बनाता है, अथवा मूल्यों के व्यापक क्षेत्र में अपने को ढाल लेता है, अथवा मूल्यों के व्यापक क्षेत्र के समन्वय में सहायता करता है, तो भी यूकेन की स्वतंत्र आध्यात्मिक-जीवन की धारणा अपनी विवरण की दृष्टि से पूर्णतया अस्पष्ट है। उसने उन विशेष शुभों की, जो कि जीवन के नैतिक दृष्टिकोण में आते हैं, खोज करने का न कुछ प्रयास ही किया है। इस जीवन के वाहक तथ्यों के लक्षणों को अस्पष्ट ही छोड़ दिया गया है। कभी-कभी स्वतंत्र आध्यात्मिक-जीवन ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह सार्वभौमिक-आत्मा का अनुभव हो, किंतु कभी-कभी वह प्रकृति की व्यवस्था के संदर्भ में, जो कि अपने-आप में आध्यात्मिक नहीं है, अनेक आत्माओं के अनुभवों, प्रेरणाओं एवं प्रतिक्रियाओं के प्रकारों के रूप में प्रतीत होता लेकिन, यदि जीवन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसने वर्तमान भूत से भिन्न होता है, तो कहां तक वर्तमान शुभ का नीतिशास्त्र भूतकाल के नीतिशास्त्र पर आधारित अथवा उससे सम्यक्पे ण नियंत्रित हो सकता है? यह तो जीवन के गत्यात्मक और स्वेच्छिक (सहज) स्वरूप पर बल देना है। यह बात जान-डिवी और बेनेडेटोक्रोसे'
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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