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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/298 वस्तुतः विभिन्न परिस्थितियों में प्रयुक्त एक ही सिद्धांत को मूर्तरूप दे सकते हैं। मानव-जाति के इतिहास में वास्तविक नैतिक-निर्णयों से सम्बंधित आभासी विरोध में से अधिकांश को सम्यक् प्रतिपादन के द्वारा दूर किया जा सकता है। अपने-आप में संगतिपूर्ण नैतिक-निर्णयों के सिद्धांत भी विरोधी दिखाई दे सकते हैं, इसलिए व्यापकता सम्बंधी परीक्षण का उपयोग करना आवश्यक है और इसका उपयोग केवल इसीलिए नहीं करना है कि कौन-सा सम्भावित सिद्धांत तथ्यों की अधिकतम संख्या को अपने में निहित कर सकता है। हमें एक ऐसा सिद्धांत खोजना होगा, जो कि संघर्षरत दोनों सिद्धांत (वंचों) में समन्वय स्थापित कर सके और उनके विरोध की व्याख्या के द्वारा उनमें निहित सत्यता का औचित्य सिद्ध कर सके। मूल्यतंत्र की इस धारणा को मूल्यों की एक मापनी (स्केल) के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। एक व्यक्ति वैयक्तिक-रूप से मूल्यों की वैसी तुलना नहीं कर सकता, जैसी कि मूल्यतंत्र की संगति के संदर्भ में की जा सकती है। मूल्यतंत्र की यह धारणा क्रमशः एक सबल धारणा के द्वारा शासित होती रहती है और सर्वाधिक मूल्यवान् क्या है, इस रूप में व्यक्ति के आचरण और दृष्टिकोण को प्रभावित करती रहती है। इस प्रकार, जीवन के विभिन्न आदर्श हैं। उच्चतम मूल्यों की प्राप्ति का प्रयास करने वाले जीवन-समुदाय में विभिन्न आदर्श एक दूसरे से किस प्रकार सम्बंधित हैं, यह मूल-अवस्था नहीं है, अपितु यह एक नैतिक-सिद्धांत का सर्वोच्च कार्य है, तो भी हम इसके द्वारा मूल्यों की मापनी (स्केल) की समस्या का संतोषप्रद समाधान प्राप्त कर पाने में सफल नहीं होंगे, क्योंकि इस समस्या का समाधान एक दूसरी समस्या में है, अर्थात् आंगिक-एकता की समस्या या क्रमबद्ध इकाई समस्या में है, जिसमें सभी मूल्य समाविष्ट हैं और उनके सम्बंधों के द्वारा आंशिक-मूल्यों की मात्रा और स्थान का निर्धारण होता है। सारले बताता है कि नैतिक-निर्णय में सदैव ही अस्तित्व अंतर्निहित है। मात्र प्रेम का प्रेम शुभ है, इस निर्णय का अर्थ विचार नहीं है। प्रेम को शुभ होने के लिए एक मानसिक-धारणा से अतिरिक्त अस्तित्ववान् होना चाहिए। ‘चाहिए' शब्द को सम्भवतया हमें निम्न हेतु फलाश्रित वाक्य-रूप में रखना होगा। यदि प्रेम अस्तित्ववान् है, तो वह शुभ है और जो प्रेम है, तो वही शुभ है। वह अपने लेखनों में इस बात को सूचित करता है। इसको मान्य करते हुए कि नैतिक-मूल्य विशेषों में पाए जाते हैं, फिर भी वह इस बात पर बल देता है कि जो भी मूल्यवान् है, वह विशेषों में
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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