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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 296 सम्बंध में पालसन का भी कथन है कि जैसे एक पौधे अथवा प्राणी की जाति की परिभाषा कर पाना असम्भव है, वैसे ही पूर्ण जीवन को परिभाषित करना भी असंभव है। यद्यपि एक सार्वभौम मानवीय - नैतिकता के प्रत्यय के किसी प्रकार का निर्माण संभव है, तथापि कोई भी व्यक्ति उसको उपलब्ध करने के योग्य नहीं होगा। यदि व्यक्ति के लिए परम शुभ एक ऐसा जीवन है, जिसमें सभी शारीरिक और मानसिकशक्तियां पूर्णतया विकसित और क्रियान्वित हों, तो यह पूर्णता विभिन्न व्यक्तियों में अलग-अलग होगी। क्योंकि व्यक्तियों के जीवन में भिन्नता मानव जाति की पूर्णता के लिए आवश्यक है, इसलिए नैतिकता के विशेष नियम सभी व्यक्तियों के लिए निरपेक्ष रूप में प्रामाणिक नहीं हैं। अंतः प्रज्ञा और अंतरात्मा की सहायता से प्रत्येक व्यक्ति को सामान्य नियमों को अपेक्षित संशोधनों के साथ अपनी-अपनी विशेष अवस्थाओं में लागू करना होगा। - सारले (जन्म 1855) मूल्यों के सामान्य सिद्धांत के दृष्टिकोण से नैतिकता के आधार की व्याख्या रिचे, सारले के ग्रंथ नैतिक मूल्य और ईश्वर का प्रत्यय (1918) में की गई है। सारले अपने-आप को उन विचारकों की श्रेणी में मानता है, जो पूर्व अवधारित तत्त्वमीमांसा के आधार पर नैतिक-दर्शन की स्थापना के प्रयास का खण्डन करते हैं। विस्तारपूर्वक समीक्षा करने के पश्चात् वह विकासवादी - नीतिशास्त्र के दावों को भी निरस्त कर देता है और नीतिशास्त्र को उस भ्रामक मनोविज्ञान से भी मुक्त करता है, जिस पर सुखवादी-सिद्धांत आधारित है। नैतिकता स्वजात विचार का एक प्रकार है (अर्थात् नैतिकता किसी अन्य पर आधारित नहीं है)। शुभता की स्वीकृति अस्तित्वसम्बंधी किसी स्वीकृति के आधार पर निगमन के द्वारा प्राप्त नहीं की जा सकती। शुभता या नैतिक मूल्य विभिन्न प्रकार के मूल्यों में एक है। मूल्यवान् होना सुखद होना नहीं है। पुनश्च, यद्यपि सुख प्रत्येक प्रकार के मूल्य में तब होता है, जबकि वह अपनी पूर्णता में अनुभूत किया जाता है और कुछ मात्रा में मूल्य की प्रत्येक उपलब्धि में होता है, तथापि सुख मूल्य का मापक या मानदण्ड नहीं है। नीतिशास्त्र की विशिष्ट विषयवस्तु के रूप में नैतिक मूल्यों की ओर आते हुए सारले कुछ मूलभूत बातों को संक्षेप में प्रस्तुत करता है। वे लिखते हैं कि नीतिशास्त्र के प्रदत्त किसी पसंदगी या किन्हीं वास्तविक परिस्थितियों में दिए गए अच्छाई और बुराई के निर्णय हैं। शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से ये नैतिक-अंतःप्रज्ञाएं हैं, क्योंकि ये
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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