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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/288 साध्यों के स्वरूप के सम्बंध में निश्चित दृष्टिकोण के बिना ही जीवन जीता है। उंट ने अपने नीतिशास्त्र में सामान्य संकल्प का जो प्रत्यय प्रस्तुत किया है, वह पूर्णतया अस्पष्ट है और उसकी स्थिति भी बहुत ही विवादास्पद है। नैतिकता उस सामान्य संकल्प की साधना है, जो कि उन सब क्रियाशील प्रवृत्तियों से पाया जाता है, जिन्हें सभी व्यक्ति समान रूप से करते हैं, तथापि वह किसी समाज के सभी व्यक्तियों के संकल्पों के योग मात्र से अधिक है। यद्यपि यह सामान्य इच्छा स्वयं में एक व्यक्तित्व नहीं है, तथापि यह उन व्यक्तियों के लिए एक वस्तुनिष्ठ लक्षण से युक्त है, जिनकी दृष्टि में यह वास्तविकताओं में एक सर्वाधिक वास्तविकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस सामान्य संकल्प-प्रत्यय में उंट की यह बात मान्य है कि नैतिकता की पूर्ण व्याख्या समाजशास्त्र के द्वारा नहीं की जा सकती है, अर्थात् इसकी वस्तुनिष्ठता समाज का भी अतिक्रमण कर जाती है। समाज तो स्वयं नैतिक-प्रमापकों के द्वारा नैतिक-रूप से निष्क्रित होता है। यद्यपि वह वस्तुनिष्ठता किसी वैयक्तिक सत्ता में निहित है, इस बात के निर्णय के सिवाय वह इसके अस्तित्व के तात्त्विक-आधार के सम्बंध में कोई सूचना नहीं देता है। यह सामान्य संकल्प नैतिक-सार्वभौमिकता और वस्तुनिष्ठता के विचार (प्रत्यय) के व्यक्तिकरण से अधिक कुछ प्रतीत नहीं होता है। नीतिशास्त्र और मूल्यों का सिद्धांत नीतिशास्त्र के प्रति एक भिन्न प्रकार का दृष्टिकोण आस्ट्रियन्स, फ्र ज-ब्रेन्टानो, एलेक्सियस वन मिनांग और क्रिश्चियन वन एहरम फेल्स के द्वारा अपनाया गया। इस सबने नैतिकता को मूल्यों की और मूल्यांकन की पद्धति की सामान्य खोज के रूप में समझने का प्रयास किया। इसको भी नैतिक-विषयों और ऐन्द्रिक-प्रत्यक्षीकरण के समान ही एक गहन और स्वतंत्र खोज की आवश्यकता थी। इन्होंने इस खोज को अनुभवात्मक -पद्धति के आधार पर प्रारम्भ किया और मूल्यों के सामान्य सिद्धांत तक पहुंचने का प्रयास किया। ब्रेन्टानो (1838-1917) ब्रेन्टानो' ने यह माना कि मानव-जाति में प्रेम और घृणा की एक शक्ति है, जो कि उतना ही वास्तविक है, जितना कि सैद्धांतिक-निर्णय का शक्ति। आंशिक-रूप से मूल्य इस सरण एवं अविभाज्य-शक्ति के ही उत्पादन हैं। यह हमें उसी प्रामाणिकता के साथ आंतरिक-मूल्यों की सत्यता को प्रस्तुत
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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