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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 2.7 से स्वीकृति कैसे प्राप्त हो गई? सोफिस्टो को मिलने वाली सफलता ही इस सामान्य . स्वीकृति की सूचक है। जब अनेक शताब्दियों तक ग्रीक लोग निःसंकोच भाव से विश्वासपूर्वक प्रशंसा और निंदा करने में अपनी नैतिक धारणाओं का उपयोग करते रहे और सद्गुण की प्राप्ति में असफलता के लिए मिथ्याज्ञान की अपेक्षा अन्य कारण को मानते रहे, तो फिर अचानक ही उन्हें यह विश्वास कैसे हो गया कि शुभाचरण ऐसी कोई वस्तु है, जिसे व्याख्यानों के माध्यम से सीखा जा सकता है। इस प्रश्न का आंशिक उत्तर उस दृष्टिकोण के विलयन के द्वारा खोजा जा सकता है, जिसका हमने अभी विवेचन किया है। इन दोनों दृष्टिकोणों के विलयन के परिणामस्वरूप जीवन को शक्ति एवं समृद्धि प्रदान करने वाली अन्य उपलब्धियों को ऐसे सद्गुणों से स्पष्टतया अलग नहीं किया गया है जिनकी शिक्षा सोफिस्ट विचारक व्याख्यानों के माध्यम से प्रदान करते थे। वर्तमान युग के समान उस युग में भी अनेक व्यक्ति यह मानते थे कि उन्हें न्याय और संयम के स्वरूप का समुचित ज्ञान है। यद्यपि सामान्य जीवन को उत्तम बनाने की कला की जानकारी के सम्बंध में वे पूर्ण आश्वस्त नहीं थे। पुनश्च हमें उस युग के ग्रीक नगर राज्यों में जन्मे स्वतंत्र और आरामप्रिय ग्रीक नागरिकों के नागरिक एवं सामाजिक जीवन के महत्व का भी स्मरण रखना पड़ेगा। आचरण की कला का उन्हें जिस ढंग से उपदेश एवं प्रशिक्षण दिया गया था, उसका मुख्य तात्पर्य नागरिक जीवन की कलासे था। वस्तुत: प्लेटो के संवादों में प्रोटागोरस ने अपना कार्य नागरिक गुणों का प्रशिक्षण देना बताया है। नागरिक गुणों से उनका तात्पर्य वैयक्तिक कार्यों के समान ही नागरिक कार्यों को सम्पादित करने की कला से था। यह स्वाभाविक भी है कि जन साधारण, वैयक्तिक कार्यों की व्यवस्था की अपेक्षा शासन प्रबंध सम्बंधी कार्यों के लिए भी वैज्ञानिक प्रशिक्षण को आवश्यक समझे। इन पेशेवर शिक्षकों के द्वारा जीवन जीने की जिस कला का आविर्भाव हुआ, उसे ग्रीक सभ्यता के इस युग की सामान्य प्रवृत्ति की महत्वपूर्ण उपलब्धियों के प्रकाश में ठीक ढंग से समझा जा सकता है। इस युग में अनुभवों से विकसित योग्यता और परम्परागत कार्यप्रणाली का स्थान तकनीकी निपुणता ने ले लिया था। सोफिस्ट विचारकों के इस युग में सर्वत्र ही ज्ञान प्राप्ति की उत्कण्ठा और व्यवहार में उसके उपयोग के प्रयासों के लिए तीव्र उत्सुकता परिलक्षित होती है। भूमापन की विधि शीघ्रता से वैज्ञानिक स्वरूप ग्रहण कर रही थी। मेटन की ज्योतिषविद्या में काल गणना में सूक्ष्मता
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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