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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 282 मान लिया कि चाहे एक अदार्शनिक व्यावहारिक- आदमी के हितों और कर्त्तव्यों की सम्पातीता-सम्बंधी संदेहों को परोपकारी - आवेगों और स्थायीभावों के संदर्भ में उदार विचारों के द्वारा संतुष्ट किया जा सकता है, तो भी नैतिक-दर्शन का कार्य यह है कि वह ऐसे कार्यों के लिए बौद्धिक- आधार की खोज करे और उस आधार को स्पष्ट करे । मेरे वास्तविक हित क्या हैं और कहां तक उसमें हित के साधक कार्यों को जाना जा सकता है? कहां तक उन कार्यों के परिणाम कर्त्तव्यों (मानव-जाति के कल्याण) के समरूप होंगे? इस खोज के परिणामस्वरूप उसने इस विरोध को विरोध करने की अपेक्षा अधिक स्पष्टता के साथ अनुभव किया। ऐसा ही विरोध मिल और उसके पहले वाले उपयोगितावादियों ने सुखवाद एवं तथाकथित सहजज्ञानवाद (अंतर्विवेक) या नैतिक-इंद्रियबोध के सिद्धांत के बीच अनुभव किया था। धीरे-धीरे अनिच्छापूर्वक सिजविक ने यह निष्कर्ष स्वीकार कर लिया कि मेरे सुख और सामान्य सुख के बीच के संघर्ष का पूर्ण समाधान इस सांसारिक - अस्तित्व के आधार पर सम्भव नहीं है, क्योंकि एक व्यक्ति को उस पूर्ण (समाज) के लिए, जिसका वह अंग (अंश) है, अपने सुखों का त्याग करना चाहिए। उसने इसके लिए किसी बौद्धिक - आधार की आवश्यकता अनुभव की । वह उपयोगितावादी - पद्धति, जिसे उसने मिल से सीखा था, बिना मूलभूत नैतिक-अंतर्विवेक के संगतिपूर्ण नहीं बनाई जा सकती थी, कांट की ओर लौटते हुए सिजविक के इस मूलभूत सिद्धांत, अर्थात् सदैव उस सिद्धांत के अनुसार कार्य करो, जिसे हम सामान्य नियम बन जाने की इच्छा कर सकें, के महत्त्व और सच्चाई से प्रभावित हुआ। यद्यपि उसने कांट की तत्त्व - मीमांसा के इस सिद्धांत को इस रूप में स्वीकार कर लिया कि जो मेरे लिए उचित है, वह वैसी ही परिस्थितियों में सभी व्यक्तियों के लिए भी उचित होगा। यद्यपि यह धारणा सिद्धांततः निश्चित ही सत्य है, तथापि इसमें व्यावहारिक दृष्टि का अभाव है। उसने यह अनुभव किया कि यह धारणा कर्त्तव्यों के एक सिद्धांत के निर्माण के लिए अक्षम थी और स्वहितों को कर्त्तव्यों के अधीन होने के प्रश्न का हल नहीं कर सकती थी, जिससे एक बौद्धिक-स्वहितवादी इस सिद्धांत को स्वीकार भी कर सके और एक स्वहितवादी भी रह सके। आत्महित की बौद्धिकता उसे परोपकार की बौद्धिकता के समान ही अकाट्य प्रतीत हुई। उसने पाया कि बटलर ने निश्चित ही यह माना था कि हित अर्थात् मेरा स्वयं का सुख एक अभिव्यक्त आबंध है और बौद्धिक- आत्म-प्रेम मानव-प्रकृति निहित दो प्रमुख सिद्धांतों में से एक है। बटलर ने नियामक शक्ति के द्वैत को स्वीकार अतः -
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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