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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/281 अधिक बुद्धिसंगत हैं और जिनके लिए उन्हें प्रयास करना चाहिए। इस समस्या पर विचार कर पाने में असफल होने के कारण यह कहा जा सकता है कि फ्रांसीसीसमाजशास्त्री इस सम्बंध में कोई कारण नहीं बता पाए कि क्यों मनुष्यों को वैयक्तिकरूप से या सामाजिक-रूप से कर्तव्य करना चाहिए। ये विचारक उन मूल्यों को महत्त्व नहीं दे पाते हैं, जो कि वैयक्तिक और सामाजिक-आचरण के लक्ष्य हैं और जिनकी उपलब्धि से ही नियमों की सार्थकता रही हुई है। उपयोगितावाद पूर्व अवधारित तत्त्वमीमांसा, विकास के जैविक-सिद्धांत और समाजशास्त्र आदि सभी धारणाएं नीतिशास्त्र की आधार-भूमि के लिए समुचित प्रत्ययों को देने में असफल रहे, इसलिए पुनः उन सिद्धांतों और पद्धतियों की ओर जाना आवश्यक हुआ, जिनके विचारकों ने अपने आप को नैतिक-समस्या के विधिवत अध्ययन से संलग्न कर रखा था। सिजविक (1838-1900) ब्रिटेन में ऐसे सभी विचारकों में अंग्रेज हेनरी सिजविक अपने युग का प्रतिनिधि था। बहुत कुछ रूप में उसके ग्रंथ संधिकालीन थे। जिन समस्याओं से उसने अपने को संलग्न कर रखा था और जिन पद्धतियों का उसने उपयोग किया था और जो निष्कर्ष उसने प्राप्त किए थे, उनके सम्बंध में वह भूतकाल के प्रबल प्रभावों से प्रभावित था। उसने स्वयं ने नीतिशास्त्र के विभिन्न युगों की प्रगति का ऐतिहासिक-विवरण प्रस्तुत किया है। इसी ऐतिहासिक-अध्ययन के आधार पर उसने अपने सिद्धांत की मुख्य विशेषताओं का निर्माण किया था, जिनकी विस्तृत व्याख्या उसने अपने ग्रंथ नीतिशास्त्र की पद्धति (1874) में की है। जिन नैतिक-नियमों का पालन करने की शिक्षा सिजविक द्वारा दी गई थी, वे नियम उसे अस्पष्ट और किस सीमा तक संदेहात्मक, रूढ़िग्रस्त, अतार्किक और असंगत प्रतीत हुए थे, इन नियमों के निरंकुश और बाह्य-आभासी दबाव का विरोधी और सहजज्ञानवादी-नीतिवेत्ताओं की निर्बलता के कारण उनसे विमुख होकर वह मिल के उपयोगितावाद की ओर आकृष्ट हुआ। पहले उसने कर्म के प्राकृतिक-साध्य एवं वैयक्तिक-सुख और कर्त्तव्य के साध्य एवं सामान्य सुख के बीच के मूलभूत गंभीर अंतर को देखे बिना ही मिल के मनोवैज्ञानिक और नैतिक-सुखवाद- दोनों को स्वीकार कर लिया और उनकी असंगतियों पर विचार नहीं किया, लेकिन बाद में उसने यह
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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