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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/279 के द्वारा मनुष्य या प्रकृति के बारे में विज्ञान जो बताता है, उससे निष्कर्ष निकालकर चाहे एक वैज्ञानिक नीतिशास्त्र का निर्माण नहीं कर नैतिकता के एक विज्ञान का निर्माण करने हेतु एक ऐसा विशिष्ट अध्ययन अपेक्षित है, जो कि नैतिकता के तथ्यों को अपनी विषय-सामग्री के रूप में ग्रहण करता है। इस दिशा में सर्वाधिक व्यापक एवं कारगर प्रयास आगस्ट कोम्टे का था। अंत में जिस पद्धति का सहारा लिया गया, वह मुख्य रूप से समाजशास्त्रीय थी, जिसका प्रारम्भ कोम्टे ने किया था। लेवीबुल इस समाजशास्त्रीय-पद्धति का उपयोग करने वाला प्रमुख विचारक लेवीबुल था। वह अपने ग्रंथ (1903) में समाजशास्त्र के सामान्य दृष्टिकोण के आधार पर नैतिक-तथ्यों की खोज करता है और अपने निष्कर्षों को समाजशास्त्रीय-ढंग से प्रस्तुत करता है। नीति-विज्ञान को नैतिक आदर्शों के चिंतन से अलग नहीं किया जा सकता है, अपितु उसे ऐसे चिंतन का प्रारम्भिक-बिंदु तथा आधार होना चाहिए, फिर भी लेवीबुल न तो ऐसे किसी चिंतन की समुचित दिशा प्रस्तुत करता है और न उसकी आवश्यकता को प्रतिपादित करता है, इसीलिए वह नीतिशास्त्र की मौलिक समस्याएं वस्तुतः क्या हैं, इस पर विचार करने में असफल रहता है। वह पूछता है कि नीतिशास्त्र के विभिन्न सिद्धांतों के होते हुए भी स्वयं पर और दूसरे लोगों पर दिए गए नैतिक-निर्णयों के सम्बंध में विचारक सदैव ही सहमत क्यों हो जाते हैं? उसका उत्तर है कि प्रबल सामूहिक-विचार समाज के कार्य करने के ढंग पर प्रभाव डालते हैं और समाज के लोगों के निर्णयों को प्रभावित करते हैं। वह इस सम्बंध में इमिल दुर्खिय के टस दृष्टिकोण का अनुसरण करता है कि कर्त्तव्य की उस आदेशात्मकता की व्याख्या सामान्य रूप से समाज के स्वीकृत विचारों या मतों की शक्ति के द्वारा हो सकती है, जेस पर कांट ने बल दिया था। किसी युग का नीतिशास्त्र अन्य किसी बात से नहीं, अपितु उस युग के सामाजिक-संगठन के द्वारा विकसित नैतिक-प्रत्ययों और नियमों प प्रभावित होता है। ये नियम और प्रत्यय समाज-सापेक्ष होते हैं और उसी समाज के संदर्भ में अपनी प्रामाणिकता और मूल्य रखते हैं। हम एक कार्य का आबंध (दायित्व) के रूप में और दूसरे का अपराध के रूप में विचार अक्सर उन विश्वासों के आधार पर करते हैं, जिनकी स्मृति हमें नहीं रही है और जो कि एक आवश्यक परम्परा के रूप में और सबल सामूहिक स्थाईभावों के रूप में प्रचलित हैं। एक जीवित समाज समाज
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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