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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/278 इस बात का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है कि समूह की उत्तरजीवितता व्यक्तिगत सुख अथवा अधिकतम व्यक्तिगत सुख की सहगामी है। इस प्रकार विकासवादी नीतिशास्त्र को इस संपातिता के प्रश्न का अथवा दूसरे शब्दों में वैयक्तिक और सामाजिक कल्याण के प्रश्न का सामना करना पड़ा और अधिक से अधिक ध्यान सामाजिक कल्याण की दिशा में दिया गया, साथ ही सद्गुण के औचित्य को सामाजिक उपयोगिता के रूप में बताया गया। शर्मन का कहना है कि विकासवादियों के अनुसार क्योंकि सद्गुण सामाजिक दृष्टि से लाभप्रद है, इसलिए वह सामाजिक उपयोगिता से अधिक कुछ नहीं है। इस दृष्टिकोण के अनुसार नैतिक नियम उस सामाजिक समायोजन की अभिव्यक्ति के रूप में स्वीकार किए गए हैं, जो कि आखिरकार अथक खोज के पश्चात् अस्तित्व के संघर्ष में मानव के समुदायों की रक्षा में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुए हैं। स्पेन्सर मानता है कि विकास के मार्ग में स्वार्थवाद और परार्थवाद के दावों के बीच तालमेल करना होगा। वह उनकी पूर्ण सहगामिता को स्वीकार करता है, यद्यपि उसने उनके बीच किस आधार पर तालमेल किया, इस सम्बंध में कोई भी सिद्धांत प्रस्तुत नहीं किए हैं। अपने प्रमुख समर्थकों के द्वारा प्रतिपादित यह विकासवादी नीतिशास्त्र उपयोगितावाद के किसी रूप के साथ उस विमर्शात्मक तत्त्वमीमांसा के मनमाने संयोग के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दे सका, जो कि भौतिक यांत्रिकता में अंतर आत्मा और मन के आधार की खोज करती है। नैतिकता का फ्रांसीसी समाजशास्त्रीय सिद्धांत __ स्वतंत्र विचारों के उदय के कारण फ्रांस में कैथोलिक चर्च का प्रभुतत्व समाप्त हो गया और राज्य की परम्परागत सत्ता कमजोर हो गई. इसके फ लस्वरूप नैतिकता के दो महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक अंकुशों की फ्रांस के नीतिशास्त्र के लेखकों को नैतिक विवेचना का एक ऐसा ढंग और नैतिकता की रक्षा का एक ऐसा आधार खोजना पड़ा, जो धार्मिक और राजनीतिक सिद्धांतों पर निर्भर न हो। अपने प्रारम्भिक वर्षों में ल्युसिन लेवीकुल ने अपने 1884 में लिखित ग्रंथ में और फ्रेट्रिक रीड ने अपने 1891 में लिखित ग्रंथ पारम्परिक तात्त्विक बुद्धिपरतावाद में नैतिकता का आधार खोजने के प्रयास किए हैं, किंतु बाद में इन दोनों ने तात्त्विक-दृष्टिकोण का परित्याग कर दिया, फलस्वरूप इस सम्पूर्ण युग में सामान्यतया नैतिकता के लिए निर्विवाद तात्त्विक आधार की खोज की आशा फ्रांस में क्रमशः विलुप्त हो गई, जैसा कि अब माना जाता है। नीतिशास्त्र की समस्याएं बाद की पीढ़ियों के किए गए प्रयास
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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