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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/263 41. उदाहरणार्थ- रीड इस सिद्धांत का उपयोग स्त्रियों एवं पुरुषों की जन्म संख्या के अनुपात के आधार पर एक-पत्नी-प्रथा या एक-पति-प्रथा के पक्ष में करना चाहता है। यद्यपि वह इसकी कोई व्याख्या नहीं करता है कि यदि प्रकृति का प्रयोजन विरल-बहुत-विवाह का निषेधक है, तो फिर वह विरल-ब्रह्मचर्य का निषेधक क्यों नहीं होगा। 42. एल.सी., चेप्टर 5 वां 43. स्टेवार्ट कर्तव्यों को तीन वर्गों में विभाजित करता है - (1) दैवीय कर्तव्य, (2) सामाजिक-कर्त्तव्य, (3) वैयक्तिक-कर्त्तव्य । तीसरे वर्ग के अंतर्गत वह मुख्यतः आनंद के आंतरिक स्रोतों और अवस्थाओं तथा विशेष रूप से स्वभाव, दृष्टिकोण, कल्पना और आदतों के आनंद पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार करता है। 44. इन सुधारों में यह देखा जा सकता है कि स्टेवार्ट, श्रेष्ठता की अभिलाषा या श्रेष्ठता की प्रतिस्पर्धा का एक ओर अधिकार-लिप्सा है और दूसरी ओर ईर्ष्या की दुर्भावना, जिसमें यह कभी-कभी संयुक्त रहती है, से अंतर करता है, जबकि रीड इस श्रेष्ठता की अभिलाषा को इन दो अलग-अलग आवेगों में से किसी एक के साथ मिश्रित करता रहा है। इस प्रकार, यहां स्टेवार्ट रीड के दृष्टिकोण को ठीक करता है। इसके साथ ही आनंद को व्यक्ति के अंतिम शुभ के रूप में स्वीकार करने के सम्बंध में भी रीड की अपेक्षा स्टेवार्ट का दृष्टिकोण अधिक निश्चित एवं संगतिपूर्ण है। स्टेवार्ट आनंद को बौद्धिक एवं कर्मों के नियामक-सिद्धांत का विषय मानता है, जिसे वह बटलर के पश्चात् आत्मप्रेम के रूप में स्वीकार करता है। यद्यपि उसने इस आत्म-प्रेम की कुछ यथोचित आलोचना भी की है। नैतिक-शक्ति के सम्बंध में भी उसकी पद्धति एवं विवेचना निश्चित ही रीड की अपेक्षा उत्तम है। वस्तुतः, यह विवेचन गहन या गम्भीर तो नहीं है, फिर भी रोकट्सबरी, एडमस्मिथ आदि सभी अपने पूर्ववर्ती विचारकों के दृष्टिकोणों में निहित सत्य को नैतिक चेतना पर निष्पक्ष चिंतन के द्वारा समन्वित एवं संगतिपूर्ण रूप में प्रस्तुतिकरण का एक सुबोध, व्यापक एवं विवेकयुक्त प्रयास है। 45. स्टेवार्ट आंशिक रूपसे व्यावहारिक-नीतिशास्त्र के अतिसामान्य विषयों को छोड़ देने की इच्छा रखता है, किंतु यह कर पाना कठिन है। रीड और स्टेवार्ट के द्वारा प्रतिपादित सहज-बुद्धि पर आधारित कोई नीति-विज्ञान किस प्रकार विशेषों की इतनी