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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 257
सुरक्षा का प्रयत्न करते हैं।
9. हाव्स इन दोनों कथनों के बीच कोई आकारिक विरोध नहीं मानता है, क्योंकि वह अधिकार को इस प्रकार परिभाषित करता है - (मूलभूत अधिकार - स्वतंत्रता - किन्ही बाह्य बाधाओं का अभाव, किंतु व्यावहारिक रूप में उसका भी 'अधिकार' से वही तात्पर्य है, जो कि जन-साधारण का है, अर्थात् वैध स्वतंत्रता (न्यायपूर्ण स्वतंत्रता) एक ऐसी स्वतंत्रता, जिसका अनुमोदन एवं दावा व्यक्ति का विवेक करता है। किसी भी स्थिति में यह कथन कि प्राकृतिक अवस्था में उचित और अनुचित की धारणाओं का कोई स्थान नहीं है, अपने वास्तविक अर्थ की अपेक्षा बहुत ही अधिक व्यापक है, क्योंकि हाव्स भी यह मानता है कि प्राकृतिक जीवन की अवस्था में भी प्रकृति के नियम के द्वारा भी असंयम का निषेध (नियमन) किया जाता है। (देखिए इसके पूर्व की टिप्पणी )
10.
कडवर्थ यह सिद्ध करने का व्यर्थ श्रम करता है कि अणुवाद और सापेक्षवाद का प्रतिपादक हेमाक्रिटस नहीं वरन् प्रोटागोरस था ।
11.
वह बताता है, कि प्रभावशील परोपकार से उसका तात्पर्य उस सिद्धांत है जो कि ऐसा निर्जीव या निस्तेज नहीं है कि जिसका बाह्य कर्मों पर असर ही नहीं होता है।
12.
सम्भवतः, निजी सम्पत्ति की परिभाषा के संदर्भ में यह लाक का बहुत ही महत्वपूर्ण परिवर्तन है, जबकि ग्रोटीअस के विचारों में निजी सम्पत्ति का अधिकार व्यक्त या अव्यक्त समझौते (संविदा) पर निर्भर माना गया था। 13. मैं सोचता हूं कि उपयोगितावाद के लाक के कथन को पुफेन्डोर्फ की उन उक्तियों के द्वारा ठीक तरह से बताया जा सकता है, जिनमें उसने अपनी स्वयं की पद्धति को बताया है । वह कहता है कि एक प्राकृतिक नियम के लिए कारण बताने या तर्क देने में हम उनसे मिलने वाले लाभों का नहीं, अपितु उस सामान्य स्वरूप का, जिसमें वे पाए जाते हैं, सहारा लेने के आदी हैं । उदाहरणार्थ, यदि हमें इस बात का कारण देना हो कि मनुष्य को दूसरे की हिंसा नहीं करना चाहिए, तो हम यह नहीं कहेंगे कि पारस्परिक हिंसा से बचने के लिए यह लाभदायक है (यद्यपि अधिकांश रूप में वस्तुतः यह ऐसा ही है), अपितु यह कहेंगे कि दूसरे व्यक्ति की वह आत्मा स्वरूपतः हमसे सम्बंधित है, जिसकी हम हिंसा करना चाहते हैं। जिस ढंग से लाक ने अपने शिक्षा सम्बंधी निबंध में पुफेन्डोर्फ को