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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 247 कहता है कि दूसरे व्यक्तियों की बौद्धिक- पूर्णता के विकास को मेरे कर्त्तव्य के रूप में स्वीकार करना एक विरोधाभास है । उसका यह कथन इसलिए सही है कि एक व्यक्ति के रूप में किसी मनुष्य की पूर्णता इस बात में निहित है कि वह अपनी कर्त्तव्य की धारणा के अनुसार अपने साध्य का निर्धारण करने में स्वयं सक्षम है और किसी कार्य को मेरे लिए एक कर्त्तव्य बनाना, जिसे दूसरा कोई नहीं, किंतु स्वयं नहीं कर सकता है, आत्मविरोधी होगा, तब किस व्यावहारिक अर्थ में दूसरे बौद्धिक-प्राणियों को मेरा साध्य बना सकता हूं। कांट उसके उत्तर में यह कहता है कि दूसरों के सम्बंध में जो भी साध्य बनाया जा सकता है, वह पूर्णता नहीं, किंतु सुख है। हमें दूसरों के उन विशुद्ध रूप से आत्मनिष्ठ साध्यों की उपलब्धि के लिए सहायता करना चाहिए, जो कि बुद्धि के द्वारा नहीं, अपितु प्राकृतिक - अभिरुचियों के द्वारा निर्धारित किए गए हैं, क्योंकि कांट का कथन है कि यदि दूसरे व्यक्तियों की स्वतः साध्य की धारणा मेरे पर अपना पूर्ण प्रभाव रखती है, तो प्रत्येक व्यक्ति के साध्यों को यथासम्भव मेरे भी साध्य होना चाहिए। अन्यत्र वह कहता है कि अपने स्वयं के सुख की उपलब्धि को एक कर्त्तव्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह एक ऐसा साध्य है, जिसके प्रति प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक अभिरुचियों के कारण अपरिहार्य रूप से प्रवृत्त है, लेकिन यह उचित है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अनिवार्यतया अपने स्वयं के सुख की इच्छा करता है और इसलिए यह इच्छा भी करता है कि दूसरे व्यक्ति आवश्यकता के समय उसे सहयोग दें, इसलिए वह दूसरों के सुखों को अपना नैतिक-साध्य बनाने लिए बाध्य है, क्योंकि इस आबंध को स्वीकार किए बिना कि समान परिस्थितियों में उसे भी दूसरों की सहायता करना है, वह नैतिक रूप में दूसरों से सहायता की अपेक्षा नहीं कर सकता। वैयक्तिक सुखों को उन साध्यों से अलग करने में, जिसके लिए प्रयत्न करना एक कर्तव्य है, कांट को बटलर और रीड के दृष्टिकोणों में एक विरोध दिखाई देता है, क्योंकि बटलर और रीड यह मानते हैं कि बौद्धिक- प्राणी के रूप में मनुष्य अपने हितों (सुखों) की प्राप्ति के लिए एक सुस्पष्ट आबंध के अधीन है। यद्यपि यह विरोध उतना अधिक नहीं है, जितना दिखाई देता है, क्योंकि कांट अपने सर्वोच्च शुभ के विवरण में अपने वैयक्तिक - सुख की चिंता की बौद्धिकता को निहितार्थ के रूप में स्वीकार कर लेता है। कांट की दृष्टि में केवल यह सुख वह नहीं है, जिसे एक सच्चा बौद्धिक-आत्म- प्रेम प्राप्त करना चाहता है, अपितु वह सुख है, जो कि नैतिक-दृष्टि से उसके योग्य होने की स्थिति पर निर्भर है । यद्यपि कांट के अनुसार, - -
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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