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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/242 प्रमापक स्वीकार करता है। वस्तुतः, वह यह मानता है कि परोपकार और सुख अवियोज्य है और यह कि किसी व्यक्ति की भावनाओं को और कार्यों की आदतों को जितना अधिक परोपकारी बनाया जा सकेगा, उतना ही अधिक सुख का लाभ उसे स्वयं को और दूसरे व्यक्तियों को होगा, किंतु वह स्वार्थवाद के सम्बंध में अपनेआपको तार्किक-गहराई में नहीं उतारता है और न यथार्थ रूप से नियंत्रित स्वहितवादी संतुष्टि की क्षमता के द्वारा सामान्यतया उपलब्ध होने वाली सुख की मात्रा का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करता है। एक सर्वोच्च निर्विवाद आत्मसमर्पण ही उसके नैतिक-आदर्श का मुख्य लक्ष्य है, जिसमें कि सभी वैयक्तिक-गणनाएं दब जाती हैं। यह दृष्टिकोण सामान्य मानवीय-अस्तित्व की बेंथम की धारणा का ठीक विरोधी है। मिल का नया उपयोगितावाद इन दोनों अतियों के बीच एक सम्यक् मध्यम मार्ग को खोज लेने का साहस करता है।
हमें यह देख लेना होगा कि कोम्ते के दृष्टिकोण में मानवता के प्रति समर्पण न केवल एक नैतिक-सिद्धांत है, अपितु एक धार्मिक-सिद्धांत भी है, अर्थात् इसे न केवल व्यावहारिक-रूप में नियामक होना चाहिए, अपितु वैयक्तिक और सार्वजनिक जीवन में नियमित रूप से और आंशिक रूप से प्रतीकात्मक-अभिव्यक्ति के द्वारा पोषित और प्रकट होना चाहिए। कोम्त के दर्शन का इस पहलू में और सामाजिकपुनर्निमाण के उसके आदर्श के विवरण में यह धर्म एक महत्त्वपूर्ण भाग अदा करता है। इन दोनों का इंग्लैण्ड में और अन्य देशों में प्रभाव तो रहा है, किंतु बहुत ही कम है। दूसरी ओर, वैज्ञानिक-पद्धति के सम्बंध में उसकी शिक्षाओं का, विशेष रूप से समाजशास्त्र या सामाजिक-विज्ञान की पद्धति के सम्बंध में उसकी शिक्षाओं का, इंग्लैण्ड के नैतिक-चिंतन पर अधिक एवं स्थायी प्रभाव रहा है। वह इन शिक्षाओं को स्वयं के द्वारा रचित मानता था और जिनका निर्माता होने का वैधानिक-दावा प्रस्तुत करता था और पेले और बेंथम के उपयोगितावाद में नैतिक और वैधानिक-आचरण के सही नियमों का निर्धारण ऐसे पुरुष और स्त्रियों पर उनके होने वाले विभिन्न काल्पनिक-प्रभावों की तुलना के द्वारा होता था, जो कि वस्तुतः समान और अपरिवर्तनशील प्रकार के प्रतिनिधि माने जाते थे।
यह सत्य है कि बेंथम जलवायु, जाति, धर्म एवं राज्य के उन परिवर्तनशील प्रभावों को स्पष्ट रूप से स्वीकार करता है, जो कि एक विधि-निर्माता के विचार के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, किंतु सामाजिक-संरचना-सम्बंधी उसके ग्रंथ ऐसे विचारों से पूरी